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________________ प्रवचन-सारोद्धार २५१ ६५ द्वारः । विनय-भेद तित्थयर सिद्ध कुल गण संघ किरिय धम्म णाण णाणीणं । आयरिय थेरु-वज्झाय गणीणं तेरस पयाइं ॥५४९ ॥ अणसायणा य भत्ती बहुमाणो तह य वण्णसंजलणा। तित्थयराई तेरस चउग्गुणा हुंति बावण्णा ॥५५० ॥ -गाथार्थविनय के बावन भेद-१. तीर्थंकर, २. सिद्ध ३. कुल, ४. गण, ५. संघ, ६. क्रिया, ७. धर्म, ८. ज्ञान, ९. ज्ञानी, १०. आचार्य, ११. स्थविर, १२. उपाध्याय और १३ गणि इनकी आशातना न करना तथा इनकी भक्ति, बहुमान एवं वर्णसंज्वलना (गुणानुवाद) करना-यह ५२ प्रकार का विनय है ।।५४९-५५० ।। -विवेचनविनय-तीर्थंकर आदि तेरह पदों का विनय करना। १. तीर्थंकर ८. ज्ञान = मति आदि २. सिद्ध ९. ज्ञानी = मतिज्ञानी आदि ३. कुल = नागेन्द्र, चन्द्रादि १०. आचार्य = आचार आदि ८ संपदा से युक्त ४. गण = कोटिकादि गण ११. स्थविर = धर्म में अस्थिर बने हुए को स्थिर ५. संघ = साधु, साध्वी, श्रावक, करने वाले श्राविका १२. उपाध्याय = आगमों की वाचना देने वाले ६. क्रिया = अस्तिवादरूप १३. गणि = अमुक साधु-समुदाय का अधिपति । ७. धर्म = साध, श्रावकादि धर्म उपरोक्त तेरह पदों की१. आशातना न करना २. भक्ति करना ३. बहुमान (अंतरंग प्रीति) करना ४. कीर्ति यानि गुण-गान करना । १३४४ = ५२ कुल विनय भेद ॥ ५४९-५५० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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