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द्वार ६०
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१. पात्र
उत्कृष्ट से गोलाई में तीन बेंत चार अंगुल ।
जघन्य से गोलाई में एक बेंत, शेष मध्यम । १. पात्र-बंध
पात्र के प्रमाणानुसार चौकोर अर्थात् गाँठ देने के बाद (झोली)
चार अंगुल छोर लटकते रहें, इतना बड़ा होना चाहिये। १. पात्र-स्थापन
एक बेंत, ऊनी वस्त्र जिस पर पात्रे रखते हैं। १. पात्र-केशरिका
पूँजणी, जिससे पात्रों की प्रमार्जना की जाती है। १. गोच्छक-कंबलखंड, पात्र प्रमाण । जो झोली बांध लेने के बाद पात्रों
पर बांधा जाता है। १. पटल (पड़ला)
ढाई हाथ लम्बे, एक हाथ बारह अंगुल चौड़े
अथवा शरीर और पात्र के प्रमाणानुसार । १. रजस्त्राण
पात्र-प्रमाण अर्थात् पात्र को तिरछा लपेटने के
बाद चार अंगुल अधिक लटकता रहे। ३. कल्प (२ सूती,
शरीर प्रमाण अर्थात् साढ़े तीन हाथ लम्बे और ढाई १ ऊनी)
हाथ चौड़े। (चादर व कंबली) १. रजोहरण - दांडी और दसी (फलियाँ) मिलकर = ३२ अंगुल लम्बा। १. मुहपत्ती
एक बेंत, चार अंगुल चौकोर । उत्कृष्टत: बारह प्रकार की जिनकल्पियों की उपधि होती है। जिनकल्प = जिन के समान आचार वाले। ये पाणिपात्र (हाथ में भिक्षा ग्रहण करने वाले) और पात्रधर (पात्र में भिक्षा ग्रहण करने वाले) दो प्रकार के होते हैं
१. पाणिपात्र - इसके दो भेद हैं-(i) सप्रावरणा व (ii) अप्रावरणा। (i) सप्रावरणा - ३, ४ व ५ उपधि वाले। जैसे मुहपत्ति, रजोहरण के साथ
(वस्त्रधारी) क्रमश: १-२-३ कल्प रखने से ३, ४, व ५ उपधियुक्त होते हैं। • पूर्वोक्त तीनों ही अविशुद्ध जिनकल्पी हैं। (ii) अप्रावरणा - मुहपत्ति व रजोहरणमात्र उपधियुक्त।
(निर्वस्त्र) • अल्प उपधिवाले होने से ये विशुद्ध जिनकल्पी हैं। २. पात्रधर
ये भी सप्रावरणा व अप्रावरणा दो प्रकार के हैं :(i) सप्रावरणा - १०, ११, व १२ उपधिवाले । जैसे मुहपत्ति, रजोहरण, ७ पात्र (वस्त्रधारी) नियोग के साथ क्रमश: १, २, या ३ कल्प रखने से क्रमश:
१०, ११, व १२ उपधिवाले होते हैं। • ये अविशुद्ध जिनकल्पी हैं।
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