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गोचरी के ४२ दोष ]
२६. गोचरी के ४२ दोष
साधु जीवन का निर्वाह भिक्षावृत्ति पर होता है । साधु-साध्वी गृहस्थों के घर से भिक्षा लाते हैं । परंतु गोचरी लाने में सतर्कता के कुछ नियम हैं । इन नियमों का अनुसरण करके भिक्षा लानी चाहिए । अगर इन नियमों का पालन न करे तो साधु को दोष लगता है, उसका उन्हें प्रायश्चित करना पड़ता है । महाव्रतों को सुरक्षित रखने के लिए इन दोषों से बचना पड़ता है । ४२ दोषों को टालने के लिए इन दोषों का ज्ञान आवश्यक है । यहाँ इन दोषों के नाम और उनकी संक्षिप्त जानकारी दी गई है । विस्तृत ज्ञान के जिज्ञासुओं को 'प्रवचन सारोद्धार' 'ओघनियुक्ति' 'पिंडनियुक्ति' आदि ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए ।
( १ ) आधाकर्म : साधु के लिए बनाया हुआ अन्न पानी ।
( २ ) औद्देशिक : विचरण करते हुए साधु संन्यासियों के लिए बनाया हुआ ।
( ३ ) पूतिकर्म : आधा कर्म से मिश्र ।
( ४ ) मिश्रजात : ज्यादा बनाये ।
(५) स्थापना : अलग निकाल कर रखे ।
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( ६ ) प्राभृतिक : लग्न आदि प्रसंगों में साधु के निमित्त देर से या पहले करे । इसी तरह सुबह या शाम को साधु के निमित्त देर से या जल्दी भोजन बनावे |
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(७) प्रादुष्करण: खिड़की खोले; बत्ती करे ।
( ८ ) क्रीत : साधु के लिए खरीद कर लाये । ( 2 ) प्रामित्य : साधु के लिए उधार लाये । (१०) परावर्तित : अदल बदल करे ।
( ११ ) अभ्याहृत : साधु के स्थान पर लाकर देना । (१२) उद्भिन्न: सील तोड़कर या ढक्कन खोलकर दे । (१३) मालापहृत : छींके में रखा हुआ उतार कर दे । (१४) आच्छेद्य : पुत्र आदि की इच्छा न हो तो भी उनके पास से लेकर दे ।
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