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________________ ५४ ] [ ज्ञानसार है जिनकल्प स्वीकार करते समय कम से कम उम्र २६ वर्ष की होनी चाहिये । साधुता का पर्याय कम से कम २० वर्ष का होना चाहिये । उत्कृष्टकाल देशोनपूर्वकोटी । * नया श्रुताभ्यास नहीं करे । पूर्वोपार्जित श्रुतज्ञान का एकाग्र मन से स्मरण करे । * जिनकल्प पुरुष ही स्वीकार कर सकता है । अथवा कृत्रिम नपुंसक लिंगी भी स्वीकार कर सकता है । * जिनकल्पी का वेश जिनकल्प स्वीकार करते समय साधु का हो । भाव भी साधु के हों । पीछे से बाह्यवेश चोरादि द्वारा ले लिया जाय तो नग्न रहे । जिनकल्प स्वीकारते समय तेजो - पद्म - शुक्ल तीन शुभ लेश्या हों । पीछे से छःओं लेश्याएं हो सकती हैं । परन्तु कृष्ण-नील- कापोत लेश्या अति संक्लिष्ट नहीं होती और अधिक समय नहीं रहती । * जिनकल्प स्वीकारते हुए प्रवर्द्ध मान धर्मध्यान नहीं होता । पीछे से आर्त्तध्यान- रौद्रध्यान भी हो सकता है कर्म की विचित्रता से ! परन्तु शुभ भावों की प्रबलता होने से आर्त- रौद्रध्यान के अनुबंध प्रायः नहीं पड़ते । * एक समय में जिनकल्प स्वीकारने वाले अधिक से अधिक दो सौ से नौ सौ हो सकते हैं । * जिन कल्पियों की उत्कृष्ट संख्या दो हजार से नौ हजार तक हो सकती है । अल्पकालिक अभिग्रह जिनकल्पी को नहीं होते । 'जिनकल्प' स्वयं ही जिन्दगी का महान् अभिग्रह है । * जिनकल्पी किसी को दीक्षा नहीं देता है । अगर उन्हें ज्ञान द्वारा दिखाई पड़े कि 'यह दीक्षा लेने वाला है', तो उपदेश दे और संविग्न गीतार्थ साधुओं के पास भेज देवे । * मन से भी अगर सूक्ष्म अतिचार लग जाय तो प्रायश्चित १२० उपवास आता है । ऐसा कोई कारण नहीं जिससे अपवादपद का सेवन करना पड़ता हो । आँख का मल भी दूर नहीं करे । चिकित्सादि नहीं करावे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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