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________________ १२ ] ५. ध्यान 'ध्यान' के विषय में प्रथम सर्वसाधारण व्याख्या का निरूपण कर के उसके भेद-प्रभेद पर परामर्श करेंगे । 1 'ध्यानविचार' ग्रन्थ में ' चिन्ता - भावनापूर्वक स्थिर अध्यवसाय को 'ध्यान' कहा है । श्री आवश्यक सूत्र - प्रतिक्रमण अध्ययन में 'ध्यातिर्ध्यानम् कालतः अन्तर्मुहुर्तमात्रम्' । इस प्रकार ध्यान का सातत्य अन्तर्मुहुर्त बताया है । श्री आवश्यक सूत्र - प्रति अ० में ध्यान के चार भेद बताये गये हैं । ( १ ) आर्त (२) रौद्र ( ३ ) धर्म (४) शुक्ल 'श्री ध्यानविचार' में इन चारों प्रकारों में से तीन प्रकारों को दो भागों में विभाजित किया है, और शुक्लध्यान को 'परमध्यान' कहा है । 'द्रव्यतः आर्तरौद्रे, भावतस्तु आज्ञा-अपाय-विपाक संस्थानविचयभिदं धर्मध्यानम्' । १. आर्तध्यान : 2 शोक, आक्रन्द, विलापादि जिसमें हो वह आर्तध्यान कहलाता है । 3 श्री औपपातिक ( उपांग) सूत्र में आर्तध्यान के चार लक्षण बताए हैं : ( १ ) कंदणया : जोरों की आवाज करके रोना । ( २ ) साअणया : दीनता करनी । (३) तिप्पाणया: आंख में से अश्रु निकालना । ( ४ ) विलवणया: बार-बार कठोर शब्द बोलना । २. रौद्र ध्यान : श्री 'ओपपातिक सूत्र' में रौद्र ध्यान के चार लक्षण बताये गये हैं : १ चिन्ता - भावनापूर्वकः स्थिरोऽध्यवसायो ध्यानम् । २ शोकाक्रन्दनविलपनादिलक्षणमार्तम् । [ ज्ञानसार Jain Education International आवश्यक सूत्र प्रतिक्रमणाध्ययने ३ अट्टस्स झाणस्स चत्तारि लक्खणा- कंदणया - सोअणया-तिप्पणया विलवणया । - औपपातिकोपांगे । For Private & Personal Use Only - ध्यानविचारे www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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