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३. स्थिरता सदैव स्थिर रहो। निरन्तर...सदासर्वदा ! स्थिरता मानव का स्थायी भाव
होना चाहिए। - ज्ञानमग्न बनने के लिए मानसिक स्थिरता | मन की स्थिरता होना आवश्यक है । उस में चंचलता, अस्थिरता और विक्षिप्तता के लिए कोई स्थान नहीं है। - "मैं स्थिर नहीं रह सकता"-कहने से कोई लाभ नहीं है। बार-बार यही शिकायत करते रहोगे कि इसका हल खोजना है? शिकायत को दूर करने का कोई मार्ग निकालना है ? यदि हल खोजना है, मार्ग निकालना है तो इस अष्टक में बताये/निर्दिष्ट उपायों का आधार लेना जरुरी है। योजना को कार्यान्वित करना परमावश्यक है। यदि अपने आप में आत्मविश्वास जगाओगे कि 'स्थिर रह सकते हैं', तब स्थिर बनने के उपाय खोज निकालोगे-उसे अमल में लाओगे । स्थिरता के रत्न-दीपक के शीतल प्रकाश में आध्यात्मिक मार्ग का अनुसरण . जारी रखो, पूर्णता की। मंजिल अवश्य मिलेगी और तुम अपने उद्देश्यों में सफल बनोगे ।
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