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३०. ध्यान
मुनि-जीवन में ध्यान का स्थान कैसा महत्त्वपूर्ण है, यह बात प्रस्तुत अष्टक में अवश्य पढो ! ध्याता - ध्येय और ध्यान की एकता में दुःख नहीं होता !
मुनि को
परन्तु ध्याता जितेन्द्रिय, धीर-गंभीर प्रशान्त और स्थिर होना आवश्यक है ! प्रासन सिद्ध और प्राणायाम-प्रवीण होना चाहिए ! ऐसा ध्याता मुनि, चिदानंद की मस्ती का अनुभव करता है और पाता है परम ब्रह्म प्रानन्द का असीम, अक्षय सुख !
कल्पना, विकल्प और विचारों के शिकंजे से मुक्त हो जाओ ! विचारों के बोझ से मन को नियंत्रित न करो ! पार्थिव जगत के झंझावात से अपने मन को बचा लो | निबंधन बन, ध्येय के साथ एकाकार हो जाओ । ध्यान-संबधित प्रस्तुत अध्याय का चिंतन-मनन करते हुए गहरायी से अभ्यास करो !
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