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भावपूजा
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अर्थ:- उल्लसित मन वाला सत्य की घंट बनाता और भावपूजा में तल्लीन,
ऐसे तेरी हथेली में ही मोक्ष है। विगेचन :- भक्ति और श्रद्धा का केशर घोलकर प्रातम देव की नवांगी पूजा की, क्षमा की पुष्पमाला गूंथकर उनके अंग सुशोभित किये, निश्चय और व्यवहार के बहुमूल्य, सुन्दर वस्त्र परिधान करवा कर उन्हें सजाया, और ध्यान के अलंकारों से उस देव को देदीप्यमान बनाया ।
आठ मद के परित्याग रुप अष्ट मंगल का आलेखन किया । ज्ञानाग्नि में शुभ संकल्पों का कृष्णागरू धूप डाल कर पातमदेव के मन्दिर को मृदु सौरभ से सुगंधित कर दिया...। धर्म-सन्यास की अग्नि से लवण उतारा और सामर्थ्य योग की प्रारती की। उनके समक्ष अनुभव का मंगलदीप प्रस्थापित कर धारणा, ध्यान और समाधि स्वरुप गीत, नृत्य एवं वाद्य का अनोखा ठाठ जमाया। ___ मन के उल्लास की अवधि न रही...मानसिक मस्ती ने....मन्दिर में लटकते विराटकाय घंट को बजाया...और सारा मंदिर घंटनाद से गंज उठा....सारा नगर गूंज उठा। घंटनाद की ध्वनि ने विश्व को विस्मित कर दिया। देवलोक के देव और महेन्द्रों के पासन तक हिल उठे। 'यह क्या है ? कैसी ध्वनि है ? यह कैसा घंटनाद ?' प्रवधिज्ञान से देखा !
पोहो! यह तो सत्य की ध्वनि ! परम सत्य का गंजारव! अवश्य प्रातमदेव के मन्दिर में सत्य का साक्षात्कार हुपा है-उसकी यह प्रतिध्वनि है । आतमदेव आतम पर प्रसन्न हो उठे हैं। पूजन-अर्चन का सत्य फल प्राप्त हो गया है। उसकी खुशी का यह घटनाद है।
चराचर विश्व में सत्य सिर्फ एक ही है और परमार्थ भी एक हो है। और वह है प्रात्मा। अनंत, असीम और अथाह । एक मात्र परम ब्रह्म । शेष सब मिथ्या है। परम सत्य का विश्व ही मोक्ष है ।
पूज्य उपाध्याय श्री यशोविजयजी मोक्ष हथेली में बताते हैं । भावपूजा में खो जाओ....मोक्ष तुम्हारे बस में है । द्रव्यपूजा के अनन्य प्रतोकों के माध्यम से मोक्षगति तक पहुंचाने के साधनस्वरुप यहां भावपूजा बतायी है। इस तात्त्विक पूजा हेतु शास्त्राध्ययन और शास्त्र
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