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________________ भावपूजा ४४२ माला और वस्त्रपरिधान कराने के पश्चात् अलंकार पहनाने जरूरी हैं । बिना इनके आतमदेव की शोभा में चार चाँद नहीं लग सकते । अलंकार का नाम है -'ध्यान' । धर्म-ध्यान और शुक्ल-ध्यान प्रातमदेव के अलंकार हैं । अलंकार कीमती होने से धारण करने पर चोर-डकैतों का डर प्रायः बना रहता है । फलस्वरूप हमारा धर्मध्यान कोई चोरडकैत लट न ले जाए, इस की सावधानी बरतना निहायत जरूरी है। कहने का तात्पर्य यह है कि आत्मा की श्री और शोभा ध्यान से है । धर्म-ध्यान के चार आलंबन :-वाचना, पृच्छना (पृच्छा), परावर्तन और धर्म-कथाओं में तन्मय रहना है । श्रुतज्ञान में रमणता पाना है। चार प्रकार की अनुप्रेक्षाओं का अनुसरण करना है। अनित्य भावना भाते रहो और अशरण भावना से भावित बनो । एकत्व भावना और संसार भावना का चिन्तन-मनन करो। साथ ही आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय का निरंतर चिन्तन करो । ख्याल रहे, हमें आत्मा का पूजन निम्नानुसार करना है० क्षमा-पुष्पों की माला आरोपित करना है, ० निश्चय-धर्म और व्यवहार-धर्म रूपि दो वस्त्र परिधान कराना है, ० धर्म-ध्यान और शुक्लध्यान के अलंकारों से सजाना है ! आतमदेव कैसे तो सुशोभित दृष्टिगोचर होंगे ! उन के दर्शनमात्र से मन-मयूर नृत्य कर उठेगा, झूम उठेगा और तब अन्य किसी के दर्शन करने की इच्छा ही नहीं होगी! मदस्थानभिदात्यागैलिखाग्रे चाष्टमंगलम् । ज्ञानाग्नौ शुभसंकल्पकाकतुण्डं च धूपय ॥४॥२२८॥ पर्थ :- प्रात्मा के आगे मदस्थानक के भेदों का परित्याग करते हुए अष्टमंगल (स्वस्तिकादि) का आलेखन कर और ज्ञानरुपी अग्नि में शुभसंकल्प स्वरुप कृष्णागरु धूप कर ! विवेचन :- वर्तमान में प्रचलित पूजन-विधि में अष्टमंगल का आलेखन नहीं किया जाता । लेकिन अष्ट मंगल की पट्टी का पूजन किया जाता है। ___करना है आलेखन और उद्देश्य है-आठ मदों के त्याग का! एकएक मंगल का आलेखन करते हुए एक-एक मद का त्याग करने की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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