________________
भावपूजा
४३८ गया होगा और उस के स्थान पर करुणा की कोमलता छा गयी होगी। तुम हर प्रकार से स्वच्छ-पवित्र बन गये होंगे।
हे साधक ! स्नान के बाद तुम्हें नये वस्त्र धारण करने हैं-शुद्ध और श्वेत वस्त्र ! धारण करोगे न? उन वस्त्रों में तुम सुशोभित. आकर्षक लगोगे और तब तुम्हें स्वयं ही एहसास होगा कि, तुम पूजक हो। जानते हो, वस्त्रों का नाम क्या है ? वस्त्र का नाम है-'संतोष' । सचमुच, कितना प्यारा नाम है ! तुम्हें पसन्द आया ? पुद्गलभावों की तृष्णा के वस्त्र परिधान कर कोई पूजक नहीं बन सकता। क्योंकि तृष्णा में रति-अरति का द्वंद्व है और है आनन्द-उद्वेग की अगणित तरंगें । ऐसी तष्णा के रंग-बिरंगे वस्त्र धारण कर तुम पूजक नहीं बन सकते । अतः तुम्हें 'संतोष' के वस्त्र परिधान करने हैं। एक बार इन्हें धारण कर तू पूजक बन जा ! यदि पसन्द आ जाएँ, तो दुबारा पहनना। अर्थात् तुम्हें पौद्गलिक पदार्थों की तृष्णा का त्याग करना ही होगा, यदि तुम पूजक बनना चाहो तो। ___ अरे भाई, कहाँ चल दिये ? पूजन करने ? जरा रूक जाओ । देव मन्दिर में प्रवेश करने से पूर्व तुम्हें तिलक करना होगा। ललाट-प्रदेश पर तिलक अंकित किये बिना तुम देव-मन्दिर में प्रवेश नहीं पा सकते । तुम्हारी काया दयासागर में स्नान करने से कैसी सुन्दर और लुभावनी हो गयी है ! संतोष-वस्त्र परिधान करने से तुम कैसे मोहक, आकर्षक लग रहे हो? अब तुम 'विवेक' का तिलक लगाकर देखो । देवराज इन्द्र भी तुम्हारे सौन्दर्य की स्तुति करते नहीं थकेगा! ।
___ 'विवेक' का तिलक ! विवेक यानी भेद-ज्ञान । जड़-चेतन का भेद समझ, चेतन आत्मा की ओर मुड़ना । जड-पदार्थ यानी शरीर में रही आत्मबुद्धि का परित्याग कर, 'शरीर से मैं (आत्मा) भिन्न है। इस तरह की श्रद्धा हढ़ करना शुद्धात्मद्रव्यमेवाहम्,' 'मैं ही शुद्ध-विशद्ध प्रात्म-द्रव्य हूँ।' ऐसे ज्ञान से आत्मा को भावित करने का नाम ही विवेक है। ऐसे विवेक का तिलक लगाना पूजक के लिये परमावश्यक है। सदा स्मरण रखना, इस विवेक-तिलक से तुम्हारी शोभा/सुन्दरता के साथ-साथ आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और तुम्हें प्रतीत होगा कि तुम पूजक हो ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org