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________________ ४१८ ज्ञानसार क्रमशः इस निर्विकल्पदशा में पहुंचना है। . अशभ भावों से शुभ भाव में जाना पड़ता है और शुभ से शुद्ध भाव में प्रवेश संभव है। अशुभ भाव से सीधा शुद्ध भाव में जाना असंभव है। कंचन और कामिनी, मानव जीवन के ऐसे प्रालंबन हैं, जो आत्मा को सदैव राग-द्वेष और मोह में फंसाते हैं । दुर्गतियों में भटकाते हैं । अतः उन के स्थान पर अन्य शुभ आलंबनों को ग्रहण करने से ही उन प्रालंबनों से मुक्ति मिल सकती है। उदाहरणार्थ-एक बालक है। मिट्टी खाने को उसे पादत है। माता-पिता उस के हाथ से मिट्टी का ढेला. छिनने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन बालम उक्तः ढेला छोड़ने के बजाय जोर-जोर से रोने लगता है। जब माता उसके हाथ में खिलौना अथवा मिठाई का टुकड़ा देती है, तब वह मिट्टी का ढेला उठाकर फेंक देता है। ठीक उसी तरह अशुभ पापवर्धक प्रालंबनों से मुक्त होने के लिए शुभ पुण्यवर्धक प्रालंबनों को ग्रहण करना चाहिये । एक बात और है, जैसा आलंबन सामने होता है, वैसे ही विचार/ भाव हृदय में पैदा होते हैं । राग-द्वेष-प्ररक प्रालंबन हमेशा राग-द्वेष ही पैदा करेंगे, जबकि विराग-प्रशम के आलंबन आत्मा में विराग-प्रशम की ज्योति फैलाते हैं | अतः परमकपाल परमात्मा की वीतराग-मूर्ति का आलंबन लेने से चित्त में विराग की मस्ती जग पड़ेगी। श्री आनन्दधनजी महाराज ने गाया है: "अमोय भरी मतिं रची रे, उपमा न घटे कोय, शान्त सुधारस झीलती रे, निरखत तप्त न होय, विमल-जिन दीठां लोयरण आज जिनमर्ति का आलंबन मानव-मन में किस तरह के अदभत / अभिनव स्पन्दन प्रकट करते हैं -यह तो अनुभव करने से ही ज्ञात हो सकता है । इस तरह नित नियमानुसार प्रवृत्ति करते रहने से अन्त में परमात्मा में स्थिरता प्राप्त होगी। ध्यानावस्था में परमात्म-दर्शन होगा। हमारी आत्मा परमात्म स्वरूप के साथ ऐसा अपूर्व तादात्म्य साध लेगी कि आत्मा-परमात्मा का भेद ही मिट जाएगा! अभेद भाव से अनिर्वचनीय मिलन होगा । तब न कोई विकल्प शेष रहेगा और ना ही कोई अन्तर! भेद में विकल्प होता है जबकि अभेद में निर्विकल्पावस्था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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