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________________ योग ४१३ हमेशा ज्ञान और क्रिया द्वारा प्रात्म-भावों में परिवर्तन लाने का लक्ष्य होना चाहिये। न भूलो कि हमें लौकिक भाव से लोकोत्तर भावों की और जाना है । स्थूल में से सूक्ष्म की ओर जाना है । इच्छा तद्वत् कथाप्रीति : प्रवृत्तिः पालनं परम् । स्थैर्य बाधकभीहानिः, सिद्धिरन्यार्थसाधनम् ।।४॥२१२।। अर्थ : योगी की कथा में प्रीति होना, यह इच्छा-योग है। उपयोग का पालन करना प्रवृत्ति-योग है। अतिचार के भय से मुक्ति, स्थिरता योग है और दूसरों के अर्थ का साधन करना सिद्धि-योग है। विवेचन :-यहाँ इच्छादि चार योगों की स्वतंत्र परिभाषा दी गयी है: १ इच्छा योग योगी पुरुषों की कथाओं में रुचि पैदा करता है। अर्थात् योग और योगी की कथायें बहुत प्रिय लगतो हैं । निर्जन, उज्जड श्मशान में कायोत्सर्ग-ध्यान में निमग्न अवंती सुकुमाल मुनि की कहानी सुनाइए, वह तन्मय/तल्लीन हो जाएगा। कृष्ण-वासुदेव के भ्राता गजसुकुमालमुनि की कथा कहिए, वह सब कुछ भूलकर निमग्न हो जाएगा। उसे आप खंधक मुनि अथवा झांझरिया मुनि की वार्ता कहिए, वह खानापीना तक छोड़ देगा। ऐसा मनुष्य इच्छायोगी होता है। साथ ही यह मत मानना कि कथायें सबको पसन्द हैं । सब को ऐसो कथायें पसन्द नहीं होतीं, इच्छायोगी को ही पसन्द होती हैं । इच्छायोगी को आधुनिक युग की कपोल-कल्पित कहानियाँ, जासूसी कथायें, सामाजिक -श्रृगारिक कथायें एवं वैज्ञानिक अदभत कथायें नीरस लगती हैं। यह साहित्य न तो उन्हें रुचिकर लगता है और ना ही उन्हें पढ़ना पसन्द होता है। उन्हें देश-विदेश की कथायें, राजा और मंत्री की सत्तालोलुपता भरी कपट-कथायें पढ़ना कतई पसन्द नहीं । ठीक वैसे ही विभिन्न राष्ट्रों की नारी-कथायें, फैसन-परस्ती के किस्से-कहानियाँ और भूत-प्रेत की कथायें, मंत्र-तंत्र की कथायें तथा अपराध-जगत की अभिनव कथायें भो उन्हें पसन्द नहीं होती। भोजन को विविधता का वर्णन करती बातें भी अच्छी नहीं लगती। . २. जिसे जो पसन्द होता है, उसे प्राप्त करने अथवा उस जैसा बनने के लिए वह प्राय: प्रयत्नशील रहता है और इच्छायोगी ऐसे हर शुभ उपाय का पालन करने में सदैव तत्पर रहते हैं। ऐसा करते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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