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________________ अनुभव ३६५ जिस तरह समस्त विश्व इन्द्रियातीत नहीं है, ठीक उसी तरह सकल विश्व इन्द्रियों द्वारा जाना नहीं जा सकता! विश्व सम्बंधित ऐसी कई बातें हैं, जिनका साक्षात्कार हमारी अथवा अन्य किसी की भी इन्द्रियों के द्वारा नहीं हो सकता। ऐसे ही तत्त्व और पदार्थों को 'अतींद्रिय' कहा गया है। ऐसे अतींद्रिय पदार्थों के वास्तविक स्वरूप का निर्णय मानव किस तरह कर सकता है ? भले ही वह विद्वान् हो या अत्यंत बुद्धिमान ! विद्वत्ता अथवा बुद्धि, अतीन्द्रिय पदार्थों का दर्शन नहीं करा सकती । तब क्या यह माना जाएँ कि आजपर्यंत इस धरती पर विद्वानों और बुद्धिशालियों का जन्म ही नहीं हुआ ? क्या वे एकाध अतीन्द्रिय पदार्थ का निर्णय सर्व-सम्मति से नहीं कर सके ? ___ आज के युग में किसी भी बात अथवा घटना को तर्क या बुद्धि के माध्यम से समझने का आग्रह बढ़ता जा रहा है। बुद्धि और तर्क से समझा जाए और इन्द्रियों से जिस का अनुभव किया जा सके उसे ही स्वीकार करने की वृत्ति प्रबल होती जा रही है। ऐसे समय पूज्य उपाध्यायजी महाराज का यह कथन प्रकाशित करना आवश्यक है ! बुद्धि से समझ में न आ सकें ऐसा कोई तत्त्व क्या इस अनंत विश्व में है ही नहीं ? क्या इस धरती पर ऐसी कोई समस्या विद्यमान नहीं, जो बुद्धि से सुलझ न सकी हो ? कोई प्रश्न नहीं है ? जबकि सच्चाई यह है कि आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के समक्ष ऐसी कई समस्याएँ हैं, जिसका हल/ निराकरण वे बुद्धि अथवा तर्क के बल पर करने में असमर्थ हैं ! संभवतः तुम यह कहोगे: “जैसे बुद्धि का विकास होता जाएगा, समस्याओं का निराकरण भी होता रहेगा।" बुद्धि अपने आप में कभी परिपूर्ण नहीं होती । वह अपूर्ण ही होती है । अतः पूर्ण चैतन्य के साक्षात्कार के बिना अथवा उस पर श्रद्धा प्रस्थापित किये बिना, किसी समस्या का हल असंभव है। आकाश से उस पार के संशोधन-अन्वेषण में रत विज्ञान, पृथ्वी पर रहे मानव-प्राणी की समस्याएँ हल करने में असमर्थ सिद्ध हुआ है। वह अनाज, आवास और रोटी-रोजी का प्रश्न हल नहीं कर सका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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