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अनुभव
कर रहे हो ? शास्त्र तुम्हें अनंत, अव्याबाध सुख कभी नहीं देगा |
मेरे इस कथन को शास्त्र के प्रति अरुचि अथवा उसकी पवित्रता का अपमान न समझो... बल्कि उसकी मर्यादा का भान कराने के लिए मैं यह सब कह रहा हूँ । शास्त्र पर ही दार-मदार बांधे बैठे तुम्हें, अपनी जडता को तिलाञ्जलि देने के लिए ही सिर्फ कह रहा हूँ !
शास्त्र ? इस का कार्य है मार्ग दर्शन देना, दिशा-दर्शन कराना । यह तुम्हें सही और गलत दिशा का अहसास कराएगा ! इससे अधिक वह कुछ नहीं करेगा ।
शास्त्रों के उपदेश हमारी आत्मभूमि पर हूकार भरते भले ही धावा बोल दें लेकिन विषय कषाय का तोपखाना क्षणार्ध में ही आग उगलते हुए उन को धराशायी कर देता है । उनका नामोनिशान शेष नहीं रखता ! निगोद में मूर्च्छित पडे किसी चौदह पूर्वधर को पूछ कर देखो कि उन का सर्वोत्कृष्ट शास्त्रज्ञान उन्हें क्यों नहीं बचा सका ? विषय - कषाय के मिथ्याभिमान से छूटा तीर जब सीना भेद कर प्रारपार हो जाता है तब शास्त्र का कवच तुच्छ सिद्ध होता है । अतः यूं कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी की अब तक कुकर्मों के साथ सम्पन्न युद्ध में केवल शास्त्र को ही एक मात्र आधार मान और उस पर विश्वास रख बैठे रहने से आजीवन पश्चात्ताप के आँसू बहाने की नौबत प्रायी है । तभी शास्त्रकार प्रस्तुत में स्पष्ट शब्दों में कहते हैं :
"शास्त्र तो तुम्हें सिर्फ दिशाज्ञान ही देंगे !" फिर तुम्हें भवसागर से पार कौन लगाएगा ? निश्चिंत रहिए । 'अनुभव' तुम्हें भव-पार लगाएगा !
हाँ, 'अनुभव' तक पहुँचने का मार्ग शास्त्र बतायेंगे । यदि भूल कर कभी मन: कल्पित मार्ग पर निकल पडे तो 'अनुभव' नामक मंजिल तक पहुँच नहीं पाओगे ? ठीक वैसे ही किसी मानसिक 'भ्रम' को 'अनुभव' समझ अपने आपको कृत कृत्य समझोगे तो ग्रात्मोन्नति से वंचित रह जाओगे । अतः हमेशा शास्त्र से ही दिशाज्ञान प्राप्त करना ! फलत: जैसे-जैसे 'तुम 'अनुभव' के उत्तुंग शिखर पर आरोहण करते जानोगे वैसे-वैसे तुम्हारी पर - परिणति निवृत्त होती जाएगी और पर- पुद्गलों का प्रार्कषण नामशेष होता जाएगा। श्रात्म-रमणता की सुवास सर्वत्र फैल
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