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________________ ३८४ षधि बताने की क्रिया अपरिग्रहता का लक्षण है ? हे मुनिराज ! यदि तुम शास्त्र - मर्यादा में रहकर चौदह प्रकार के धर्मोपकरण धारण करते हो, उनका नित्य प्रति उपयोग करते हो, उनसे तुम्हारा ज्ञान दीप अखंड और स्थिर रहता है, तो निःसन्देह तुम परिग्रही नहीं हो । नग्न रहने से सर्वथा अपरिग्रही नहीं वना जाता अथवा वस्त्र धारण करने से परिग्रही ! राह में भटकते कुत्ते और सूर नग्न ही होते हैं न ? क्या उन्हें हम अपरिग्रही मुनि की संज्ञा देंगे ? ठीक वैसे ही विजयादशमी के दिन घोडे को सजाया जाता है, सोने और चांदी के कीमती गहने पहनाये जाते हैं, तो क्या उस घोडे को हम परिग्रही कहेंगे ? कुत्ता कोई मूर्च्छारहित नहीं है, ना ही घोडे को अपनी सजावट पर मूर्च्छा है ! यह लक्ष्य होना चाहिए कि कहीं ज्ञान - दीपक बुझ न जाए । ज्ञानदीपक को निरन्तर प्रज्वलित - ज्योतिर्मय बनाये रखने के लिये तुम जो शास्त्रीय उत्सर्ग - अपवाद का मार्ग अपनाते हो, उसमें तुम शत-प्रतिशत निर्दोष हो, लेकिन तनिक भी आत्म-प्रवंचना न हो, इस बात की सावधानी बरतना । ऐसा न हो कि एक तरफ शास्त्र - अध्ययन करने हेतु वस्त्र - पात्रादि ग्रहण करते हो और दूसरी तरफ वस्त्र पात्रादि ग्रहण व धारण करने में मूर्च्छा - श्रासक्ति गाढ़ बनती जाय । जैसे-जैसे ज्ञानोपासना बढ़ती जाए, वैसे-वैसे पर - पदार्थ विषयक ममत्व क्षीण होता जाए, तो समझना चाहिए कि ज्ञानदीपक ने तुम्हारे जीवन-मार्ग को वास्तव में ज्योतिर्मय कर दिया है । सिर्फ ज्ञानोपासना ! अन्य कोई प्रवृत्ति नहीं ! मन को भटकने के लिये अन्य कोई स्थान नहीं.... । बस, एक ज्ञानोपासना में ही तल्लीनता ! फिर भले ही काया पर - पदार्थों को ग्रहण करे और धारण करे | आत्मा पर इसका क्या असर ? अर्थ : मूर्च्छाछन्नधियां सर्व, जगदेव परिग्रह: । मूर्च्छया रहितानां तु जगदेवापरिग्रहः ॥६८॥ २००॥ ज्ञानसार जिसकी बुद्धि मूर्च्छा से श्राच्छादित है, उसके लिये समस्त जगत परिग्रह स्वरुप है, जबकि मूर्च्छा-विहीन के लिये यह जगत अपरिग्रह स्वरूप है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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