________________
परिग्रह-त्याग
३७१
उससे अाजित मानव पिता की भी हत्या करते नहीं हिचकिचाता, सदगुरु और परमात्मा की अवहेलना करते पीछे नहीं हटता, मुनि-हत्या करते नहीं घबराता । ठीक वैसे ही असत्य बोलते, चोरी करते नहीं रुकता ।
धन-धान्य, संपत्ति-वैभव, परिवार, भवन और वाहन आदि सब परिग्रह है। आत्मा से भिन्न पदार्थों के लिए मूर्छा-ममत्व परिग्रह कहलाता है । अतः परिग्रहपरित्याग किए बिना प्रात्मा प्रशान्त नहीं बनती ।
परिग्रहगहावेशाद, दर्भाषितरज:किराम ।
धुयन्ते विकृता: किं न प्रलापा लिडि गनामपि ॥२॥१६४॥ अर्थ :- परिग्रह रुपी ग्रह के प्रवेश के कारण उत्सूत्रभाषण रुपी धूल सरे
श्राम उडाने वाले वेशधारी लोगों की विकारयुक्त बकवास .
तुम्हें सुनायी नहीं दे रही हैं ? विवेचन : धन-संपत्ति और बंगला-मोटर आदि अतुल वैभव में गले तक डबे और परिग्रह के रंग में रंगे हुए सामान्य गृहस्थों की बात तो छोड़ दीजिए, लेकिन जिन्हों ने सर्वदृष्टि से बाह्य परिग्रह का परित्याग कर दिया है, जो त्यागी, तपस्वो, मुनिवेशधारी हैं और आत्मानन्द की पूर्णता के राजमार्ग का अबलवन लिया है. ऐसे महापुरुष परिग्रह के रग में रंगे दृष्टिगाचर हो, तब भला ज्ञानी पुरुषों को खेद नहीं होगा तो क्या होगा ?
मुनि और परिग्रह ? परिग्रह के बोझ को आनन्द से ढोता मुनि, मुनि-जीवन के कर्तव्यों से भ्रष्ट होता है । महाव्रतादि के पुनीत पालन में शिथिल बनता है और जिनमार्ग की आराधना के आदर्श को कलंकित करता है । ज्ञान और चारित्र के विपुल साधनों का संग्रह करने के उपरांत भी जिस मुनि को यह मान्यता है कि 'मैं जो भी कर रहा है, सर्वथा अयोग्य है और मैं परिग्रह के पापमय बहाव में बहा जा रहा हूँ।' ऐसा मुनि भूलकर भी कभी दूसरों को परिग्रह के मार्ग पर चलने का प्रोत्साहन नहीं देगा । ठीक वैसे ही 'परिग्रह के माध्यम से अपना गौरव नहीं बढेगा ।' ऐसा मानने वाला मुनि, उसका अनुकरण एव अनुसरण करने वाले अन्य मुनियों के कान में धीरे से कहेगा : "मुनिजन, आप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org