________________
शास्त्र
३६७ शास्त्र, दूसरा काई मार्ग नहीं है । लेकिन, जिसे लौकिक जोवन ही जीना है और आत्मा, माक्ष, परलाक आदि से कोई सरोकार नहीं है, ऐसे विद्वान्,बुद्धिमान, कलाकौशल्य के स्वामि और राष्ट्रनेता भले ही शास्त्र की तनिक भी परवाह न कर ! शास्त्रों को सरेआम अवहेलना करें. उन के और तुम्हारे पादर्श भिन्न हैं, उस में जमीन-पास्मान का अन्तर है ।
हे मुनिवर, तुम्हें तो शास्त्राधार लेना ही होगा । यही तुम्हारे लिए सर्वथा श्रेयस्कर और उपयुक्त है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org