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भवोद्वेग
३१५ दृष्टि से देखतो हैं ? तुम भो उसके वास्तविक स्वरूप का दर्शन करोगे, तब उद्विग्न हो उठोगे । तुम्हारे मन में उसके प्रति अप्रीति के भाव पैदा होंगे । एक प्रकार की नफरत पैदा हो जाएगी। और यही तो होना चाहिये । मोक्ष के इच्छुक के लिए इसके सिवाय पोर कोई चारा नहीं है । संसार की आसक्ति.... प्रीतिभाव छिन्न-भिन्न हुए बिना शाश्वत्.... अनन्त....प्रदीर्घ...प्रव्याबाघ सुख संभव नहीं । संसार के यथार्थ स्वरूप का तनिक जायजा लो।
संसार को समुद्र समझो । १. संसार-समुद्र का मध्यभाग अगाध है । * २. संसार-समुद्र की सतह अज्ञान-वज्र की बनी हुई है । *३. संसार-समुद्र में संकटों के पहाड़ है। * ४. संसार-समुद्र का मार्ग विकट-विषम है । * ५. संसार-समुद्र में विषयाभिलाषा की प्रचंड वायू वह रही है ।
६. संसार समुद्र में क्रोधादि कषायों के पाताल-कलश हैं। * ७. संसार-समुद्र में विकल्पों का ज्वार आता है । * ८. संसार-समुद्र में रागयुक्त इन्धन से युक्त कंदर्प का दावानल __ प्रज्वलित है । ht. संसार-समुद्र में रोग के मच्छ और शोक के कछए स्वच्छंद विहार
कर रहे हैं । * १०. संसार-समुद्र पर दुर्बुद्धि की बिजली रह-रहकर कौंधती है । *११. संसार-समुद्र पर माया-मत्सर का भीषण तूफान गहरा रहा है ।
१२. संसार-समुद्र में द्रोह का भयंकर गर्जन हो रहा है । * १३, संसार-समुद्र में नाविकों पर संकट के पहाड़ टूट पड़े हैं । ___ अत: संसार-समुद्र सर्वथा दारुण है और विषमता से भरा पड़ा है। संसार-समुद्र :- 'वाकई संसार एक तूफानी सागर है'- इस विचार को हमें अपने हृदय में भावित करना चाहिये और तदनुसार जीवन का भावो कार्यक्रम निश्चित करना चाहिये। सागर में रहा प्रवासी उसे पार करने के नानाविध प्रयत्न करता है, ना कि उसमें सैर-सपाटा अथवा दिल -बहलाव का प्रयत्न करता है । उसमें भी यदि सागर तूफानी हो
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