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ज्ञानसार
जाति के लोगों को उच्च स्थान प्रदान किये जाते हो, लेकिन यह न भूलिए कि 'जैसी जात वैसी पात !'
सोचना यह है कि आखिर इस उत्थान और पतन के पीछे क्या राज छिपा है ? जातिविहीन और मतिमंद व्यक्ति उच्च स्थान पर आरूढ कैसे हो गये ? यहां पर इसका समाधान/निराकरण यों किया गया है : "अभ्युदय करनेवाले कर्मों के उदय से!" शुभ कर्म का उदय व्यक्ति का अभ्युदय करता है। शुभ कर्मका उदय, जातिविहीन और मतिमंद के लिए भी लागु है ! बुद्धिहीन व्यक्ति भी शुभ कर्म के उदय से सर्वसत्ताधीश बन जाता है !
लगता है आज के युग में उन तमाम नीच जाति के और बुद्धिहीन लोगों के सामुदायिक शुभ कर्मों का उदय आ गया है । फलत: निम्न जातिवाला 'बोस' बन बैठा है और उच्च जातिवाला कुशाग्र बुद्धि का घनी दफ्तर और कार्यालय में चपरासी, चाकर और पहरेदार बन कर रह गया है । नीच जाति के लोग 'बड़े' बन गये हैं ! जबकि उच्चजाति में जन्मा हर तरह से कुशल, उसकी अटेची उठाकर आगे-मागे चलता नजर आता है ।
प्रायः यह देखा गया है कि यश, कीति, सत्ता, सौभाग्य, सुस्वर, आदेयता आदि कर्म, उच्च और नोच जाति में भेदाभेद नहीं करते, ठोक वैसे हो अपयश, अरकोति, दुभाग्य, कर्कश-स्वर, अनादेयता आदि की उच्च जाति से न कोई दुश्मनी है अथवा न परहेज है। जानते हो, हमारे स्वतंत्र भारत के संविधान कर्ता कौन थे ? डा. आम्बेडकर ! उनका जन्म नीच जाति में ही हरा था । कांग्रेसाध्यक्ष कामराज, जो हमारे स्व. प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के युग की एक जानी मानी हस्ती और 'कामराज-योजना' के जनक थे वे भी नीच कुल में हो जन्मे थे। दोनों हस्तियाँ हरिजन थी ! भारत के भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष डॉ. जाकोर हुसैन एक मुस्लिम परिवार में जन्मे थे ! जबकि तत्कालीन काँग्रेस प्रमुख दामोदर संजीवैया भी हरिजन परिवार से ही थे ! भारत के सर्वोच्च स्थानों पर हीनजाति के लोग बैठे थे ! उसके पीछे कौन सी अदृश्य शक्ति काम कर रही थी ? आखिर उसका राज क्या था ? सिर्फ एक, उनके शुभ कर्मों का उदय !
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