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ज्ञानसार
बुल्गालीन जैसे रुस के महारथियों को जन-मानस में से उखाड़ फेंका था ! इतना ही नहीं बल्कि रुस के भाग्यविधाता-निर्माता लेनीन-स्टेलीन की कब्रों को तोड़-फोड़ कर उनका नामो-निशान तक मिटा दिया ! उसी महाबली क्रुश्चेव का पतन होते देर न लगी ! एक ही रात में वह और उसका नाम मिट गया ! आज रुस में रुसी उसे जानते तक नहीं !
सिर्फ क्रुश्चेव ही नहीं, ममरिकन राष्ट्राध्यक्ष केनेडी को ही लीजिए ! उसका प्रभाव और दबदबा विश्व के हर कोने में छाया हुआ था ! अमरिकन प्रजा अब्राहम लिंकन के बाद उसे ही महापुरुष मानती थी ! वह उनका एक मात्र भाग्य-विधाता था ! लेकिन देखते ही देखते वह गोली का निशाना बन गया ! उसे कोई नहीं बचा सका ! ऐसे कई किस्से किंवदंतियों से विश्व का इतिहास भरा पडा है ! इस पतन और विनाश के पीछे एक अदृश्य फिर भी ठोस सत्य, कठोर फिर भी चिरंतन तत्व काम कर रहा है ! जानते हो, वह क्या है!
वह है कर्मतत्त्व....!
यश, कीति, सौभाग्य, सफलता, सत्ता और शक्ति यह सब 'शुभ कर्म' के परिणाम हैं । उन की अपनी समयमर्यादा होती है। लेकिन अल्पमति मनुष्य इससे पूर्णतया अनभिज्ञ होता है । वह उसकी कालमर्यादा को जानता नहीं । अतः उसे दीर्घकालीन समझ लेता है । लेकिन जब कल्पित ऐसे अल्पकालीन शुभ कर्मों का अस्त हो, अचानक अशुभ कर्मों का उदय होता है, तब पतन, अधःपतन और विनाश की दुर्घटनायें घटती हैं !
अपयश, दुर्भाग्य, अपकीति, निर्बलता और सत्ताभ्रष्टता, ये अशुभ कर्मों के फल हैं । सूरमानों के सरदार इजिप्त के राष्ट्राध्यक्ष नासिर को इजराईल जैसे छोटे राष्ट्र के हाथों हार खानी पड़ी, जीते-जी कलंक का घब्बा अपने दामन पर लगा, एक 'दुर्बल शासक' के रुप में प्रसिद्ध हुमा.... भला क्यों ? सिर्फ एक ही कारण ! उसके शुभ कर्मों का प्रस्त हो गया था और अशुभ कर्मों ने उस पर अधिकार कर लिया था ।
लेकिन यों घबराने से काम नहीं चलता । अशुभ कर्म की कालमर्यादा पूरी हो जाने पर, शुभ कर्म का पुन: उदय होता है।
दूसरी भी एक विचित्रता है कि जब कतिपय अशुभ कर्मों का उदय
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