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________________ २८७ सर्वसमृद्धि विवेचन : महादेव शंकर ! मुनिश्री आप ही शंकर हैं ! क्या आप जानते हैं ? यह कोई हंसी मजाक की बात नहीं, बल्कि हकीकत है। महादेव शंकर की शोभा....उनका महाप्रताप ... अद्वितिय प्रभाव ... सब कुछ आपके पास है। आप सकल समृद्धि और सिद्धियों के एकमेव स्वामी हैं । हाँ, प्रापका निवास स्थान भी कैलाश पर्वत है। अध्यात्म के कैलाश पर आप अधिष्टित है न? नीरे पत्थरों की पर्वतमाला से यह अध्यात्म का पर्वत अनेकानेक विशेषताएँ लिए हुए है। कैलाश पर्वत से अध्यात्म का पर्वत सचमुच दिव्य और भव्य है । वृषभ-बैल का वाहन आपके पास है न ? आप विवेक-रुपी वृषभ पर अरूढ हैं । माप सत्-असत् के भेदाभेद से अवगत हैं, हेय-उपादेय से भलीभाँति परिचित हैं ! शुभाशुभ में रहे अन्तर का पापको ज्ञान है । यही आपका विवेक वृषभ है। क्या आप जानना चाहते हैं कि गंगा-पार्वती कहां पर हैं ? अरे, आप की दोनों ओर गंगा-पार्वती बैठी हुई हैं। तनिक दृष्टिपात तो कीजिए उस ओर ! कैसा मनोहारी रूप है उनका | और आपकी प्रेम-दृष्टि के लिये दोनों लालायित हैं । __ चारित्र-कला आप की गंगा है और ज्ञान-कला पार्वती । उन गंगा-पार्वती से ये गंगा और पार्वती आप को अपूर्व अद्भूत एवं असीम सुख प्रदान करती है ! ये दोनों देवियां दिन-रात आपके साथ ही रहती हैं और माप को जरा भी कष्ट पड़ने नहीं देती। प्राप से अलग उन का अपना अस्तित्व ही नहीं है...। माप के अस्तित्व एवं व्यक्तित्व में दोनों ने अपना अस्तित्व और व्यक्तित्व विलीन कर दिया है । ऐसे अनन्य, अद्भुत प्रेम के प्रतिक जैसी चारित्र-कला और ज्ञान कला समान देवियाँ आपके साथ हैं। अब भला बताइए, आपको विश्व से क्या लेना-देना ? उसकी परवाह ही क्यों ? कहिए मुनिराज, निःसंकोच बताइए । समद्धि में कोई कसर रह गयी है ? आवास के लिए उत्तुंग पर्वत, वाहन के रूप में बलिष्ठ वृषभ और गंगा-गौरी जैसी प्रियतमाएँ ! और आप को किस चीज की आवश्यकता है ? आप अपनी धुन में रह सारी दुनिया को प्रेमदीवानी बनाते रहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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