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वासना के तोर तुम्हारी प्रदक्षिणा कर पुनः लौट जाएंगे और उसी द्वैत्य का वक्ष स्थल भेदते हुए आर-पार हो जाएँगे । जानते नहीं ? स्थलीभद्रजी पर मोह - म्लेच्छ ने कैसा तो गजब का आक्रमण किया था ? वासना की कैसी अति-वृष्टि की थी ? लेकिन वे चक्रवर्ती मुनीन्द्र थे ! मोह ने नगरवधु कोशा के हृदय में मिथ्यात्व का प्रारोपण किया था, मिथ्यात्व ने उन पर बासनाओं की जबरदस्त मुठ मारी थी । कोशा नित्यप्रति नव-शृंगार कर वासनाओं के तीर पर तीर छोडने लगी, वासनाओं की तुमुल वर्षा करने लगी, उन्हें वश करने के लिए नानाविध नेत्र - कटाक्ष और प्रेमालाप की शतरंज बिछाने लगी, अंगविन्यास किये और मदोत्तेजक भोजन पुरसे ! गीत-संगीत प्रौर नर्तन-कीर्तन से जादूई शमां बांध दिया। लेकिन उस की युक्ति स्थुलीभद्रजी पर कारगर सिद्ध न हुई । ना ही उस का मनोवांछित पूरा कर सकी । काम-वृष्टि का एकाध बूँद भी उन्हें भीगा नहीं सका ! क्योंकि उस चक्रवर्ती के पास सत्क्रियाओं के चर्मरत्न और सम्यग् - ज्ञान के छत्ररत्न जो थे । यह दो रत्न सदा-सर्वदा चक्रवर्ती की, उनके शत्रुनों से रक्षा करते हैं । बशर्ते कि चक्रवर्ती इन दोनों को अहर्निश अपने पास ही रखे । यदि उन्हें अपने पास नहीं रखा तो घडी के सौवे भाग में ही चक्रवर्ती को नामशेष होते देर नहीं लगेगी ।
मुनिराज ! आपको तो सभी आश्रवों का परित्याग कर सर्वसंवर में स्वयं को नियंत्रित करना है, यानी क्रिया और ज्ञान में परिरगति प्राप्त करना है । मन-वचन-काया के योगों को चारित्र की क्रियाओं में पिरो लेना है ! और ज्ञान का अखण्ड उपयोग रखना है । भूलकर भी कभी ज्ञान ज्योति बुझ न जाए, इसका पूरी सावधानी से ध्यान रखना है । यदि क्षायोपशमिक ज्ञान, शास्त्रज्ञान की मंद दीपिका भी बुझ गयी तो वासनाओं की डांकिनियाँ तुम्हारा खून चूस लेंगी । वासनाओं की मूसलाधार बारिश तुम्हें भीगा कर ही छोड़ेगी और फलतः तुम अस्वस्थ हो, भाव मृत्यु की गोद में समा जाओगे ।
ज्ञानसार
प्रतिदिन स्मरण रखिए कि आप चक्रवर्ती हैं । चक्रवर्ती की अदा से जीवन व्यतीत करना सीखिए। दो रत्नों को अहर्निश अपने पास रखिए ! मोह - म्लेच्छ पर विजयश्री पा लोगे !
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