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२०. सर्वसमृद्धि
__ आहा ! 'वैभव' और 'समृद्धि, शब्द हो कैसे आकर्षक हैं ? जिस वैभव और
समृद्धि की चोटीपर से फिसल जाने 1 के कारण जीव की हड्डीपसली खोजे कहीं नहीं मिलती है, उस शिखर पर पहुंचने के लिए न जाने कितने लोग अधीर/आकुल-व्याकुल हो रहे हैं ! प्रस्तुत अध्याय में अपूर्व और अद्भुत समृद्धि के सुहाने गगनचुम्बी शिखरों का दर्शन कराया गया है !
आप इस अष्टक में आध्यात्मिक नैभव-संपत्ति का रसपूर्ण भाषा में वर्णन पढ़ोगे। भौतिक वैभवों का आकर्षण मिट जायेगा और आध्यात्मिक संपत्ति 1 पाने के लिए लालायित हो उठेगे !
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