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ज्ञानसार
प्रशंसा' से दूर रहने पर तुम्हें लगेगा कि दुनिया में तुम्हारी सही पहचान, वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो रहा है। लेकिन एक समय ऐसा आ जाएगा, जब तुम्हारे गुण समस्त विश्व के लिए एकमेव आलंबन सिद्ध होंगे । दुनिया के समस्त प्राणी तुम्हारे गुरगों की रस्सी थामकर पापकंड से बाहर निकल जायेंगे। धीरज का फल मीठा होता है । जल्दबाजी करनेवाले व्यक्ति के लिए नुकसानदेह है । और हाँ, दूसरों का गुणानुवाद करने की प्रवृत्ति निरन्तर जारी रखना, बीच में ही स्थगित नहीं कर देना ।
उच्चत्वरष्टिदोषोत्थस्वोत्कर्षज्वरशान्तिकम् ।
पूर्वपुरूषसिंहेभ्यो, भृशं नोचत्वभावनम् ।।४।।१४०॥ अर्थ :- सर्वोच्चता की दृष्टि के दोष से उत्पन्न स्वाभिमान रूपी ज्वर को
शान्त करने वाले पूर्वपुरूषरुपी सिंह से अत्यन्त न्यूनता की भावना
करने जैसी है। विवेचन :- उच्चता का खयाल ! खतरनाक खयाल है । "मैं सर्वोच्च है । मैं दूसरों के मुकाबले महान हैं। तप और चारित्र से बड़ा है। ज्ञान से श्रेष्ठ हूँ । सेवा-सादगी के क्षेत्र में परमोच्च हूँ।" यदि इस तरह की नानाविध वैचारिक तरंगें किसी के दिमाग में निरन्तर उठती हों, तो निहायत खतरनाक और भयानक है। याद रखना, इन्हीं विचारतरंगों से एक प्रकार का ऐसा विषम ज्वर पैदा होगा कि जान के लाले पड़ जाएंगे। ऐसा ज्वर, कि जो मलेरिया, न्यूमोनिया और टायफाइड से भी भयंकर होता है और वह है-अभिमान....मिथ्याभिमान !
__ संभव है, ज्वर का यह नाम तुमने जिंदगी में पहली बार ही सुना होगा। तेज बुखार में मनुष्य को मिठाई कडवी लगती है। वह निरन्तर अनर्गल बकबास और पागलपन के प्रलाप करता रहता है । अपनी सुघबुध और होशो-हवास खो बैठता है | अभिमान.... मिथ्याभिमान के विषम ज्वर में भी ये ही सारी प्रतिक्रियायें होती रहती है। लेकिन अभिमानी व्यक्ति इसे देख नहीं पाता और ना ही समझ पाता है ।
. अभिमान के तेज बुखार में नम्रता, विनय, विवेक, लघुता की मेवा-मिठाई कभी नहीं भाती, बल्कि कडवी लगती है । ठीक वैसे ही उस पर 'पर-अपकर्ष' के पागलपन की धुन सवार हो जाती है । फलतः
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