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निर्भयता
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उन्हें पराजय का सामना न करना पडा । बल्कि बिजयश्री की भेरी बजाते वे बहार निकल पाये ।
___ अत: हमेशा ज्ञान-कवच सम्हाल रखना चाहिए। भूलकर भी कभी दीवार पर टांगने की मुर्खता की, अलमारी में बंद कर दिया और इधर एकाध मोहास्त्र कहाँ से आ टपका तो काम तमाम होते देर नहीं लगेगी ! ज्ञान-कवच कस कर बांधे रखिए ! जानबुझ कर ज्ञानकवच दूर मत करो ! वह दूर सरक नहीं जायँ-इसलिये सावधान रहें। चूंकि कभी-कभी वह कवच सरक कर गिर जाता है !
, इन्द्रियाधीनता 0 गारव (रसादि) 0 कषाय (क्रोधादि)
® परिषह-भीरूता इन चारों में से एकाध के प्रति भी तुम्हारे मनमें प्रेम पैदा होने भर की देर है ! कि ज्ञान-कवच सरक ही जाएगा और मोहास्त्र का जबरदस्त वार तुम्हारे सीने को छिन्न भिन्न कर देगा ! तुम पराजित हो, धराशायी हो जाओगे ।
संवेग-वैराग्य और मध्यस्थदृष्टि को विकसित-विस्तारित करनेवाले शास्त्र-ग्रंथों का नियमित रूप से पठन-पाठन, चिंतन-मनन और परिशीलन करते रहो ! तुम्हारी जोवन-दृष्टि को उसके रंग में रंग दो !
तूलवल्लघवो मूढा भ्रमन्त्यभ्रे भयानिलैः ।
नै रोमापि तैनिगरिष्ठानां तु कम्पते ॥७॥१३॥ अर्थ : आक की रूई की तरह हलके और मूढ ऐसे लोग भय रुपी वायु
के प्रचंड झोंके के साथ आकाश में उडते है, जबकि ज्ञान की शक्ति से परिपुष्ट ऐसे मशक्त महापुरुषों का एकाध रोंगटा भी नहीं
फडकता । विवेचन :- प्रचंड आँधी आने पर तुमने आकाश में धूल के गुब्बारे उडते देखे होंगे ? कपड़े और घास-फूस के तिनके उडते देखे होंगे ? लेकिन कभी मनुष्य को उडते देखा है ? हाँ, बड़े-बड़े, भारी-भरकम मनुष्य जैसे मनुष्य भी उड जाते हैं ! वायु के झंझावाती झोंके उन्हें आकाश में उड़ा ले जाते हैं और जमीन पर पटक देते हैं ।
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