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________________ २१६ ज्ञानसार संपदा और काम-वासना का पक्षपाती बनता है और उसके वशीभूत होकर नाना प्रकार के निंदनीय कार्य करता भटकता रहता है ! तटस्थ पुरुष इन्द्रिय-जन्य सूखों के प्रति विरक्त और भोगोपभोग वृत्ति से विमुख होता है । वह सुख-भोग का कभी पक्षधर नहीं होता! फलतः वह सुख-भोगजन्य राग-द्वेष से सर्वथा पर होता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह पूर्णरूप से राग-द्वेष से मुक्त हो जाता है । विरक्त बन जाने के बावजूद भी उसमें रहे असत् तत्वों के प्रति अनुराग और सत् तत्त्वों के प्रति द्वेष, उसे तटस्थ नहीं होने देते। अत. असत् तत्त्व को सत् और सत् तत्त्व को असत् सिद्ध करने के लिए रात-दिन प्रयत्न करता रहता है । इसके लिए वह कुतर्क और दलीलों का आश्रय लेता है । तब फिर तटस्थता कैसी ? ____ क्या जमालि में सुख के प्रति विरक्ति और काम-वासना के प्रति उदासीनता नहीं थी ? अवश्य थी, लेकिन फिर भी वह राग-द्वेष से अलिप्त न रह सका । क्यों कि वह असत् तत्त्वों के प्रति राग और सत् तत्त्वों के प्रति द्वेष से उपर न उठ सका । उसे न जाने कितने लोगों के उपालम्भ और लोक-निंदा का भोग बनना पड़ा ! खुद भगवान महावीर का उलाहना भी उसको सुनना पड़ा । जीवन-संगिनी आर्या प्रियदर्शना ने उसका त्याग किया । हजारों शिष्यों ने उसे छोड दिया ! अरे, उसे सरे-पाम अपमान, घृणा और बदनामी झेलनी पड़ी ! फिर भी वह तटस्थ न बन सका सो न बन सका ! असत् तत्त्व को सत् । सिद्ध करने के लिए उसने असंख्य कंकर उछाले, यहाँ तक कि उसकी वर्षा हो कर दी और दीर्घ काल तक असत् तत्वों का कट्टर पक्षधर बना रहा ! जबकि कुम्भकार-श्रावक ढक के कारण प्रार्या प्रियदर्शना तटस्थता प्राप्त कर गयी ! उसने कुतर्क का त्याग किया ! महावीर देव के पास पहँच गयी और संयमाराधना करती हुई, राग-द्वेष से मुक्त हो परम मध्यस्थ भाव में स्थिर हो गयी ! . इसीलिए कहा गया है कि जब तक कर्मजन्य भावों के प्रति तीव्र आसक्ति है, तब तक तटस्थता कोसों दूर है । अपनी आत्मा के स्वाभाविक गुणों में रमणता/निमग्नता यही वास्तविक मध्यस्थता है । स्वभाव का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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