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ज्ञानसार
अर्थ : -जो समता रूपी कुड़ में स्नान कर पाप से उत्पन्न मल को दूर करती है,
दुबारा मलिन नहीं बनती, ऐसी अन्तरात्मा विश्व में अत्यन्त पवित्र है। विवेचन : तो क्या तुम्हें स्नान करना ही है ? पवित्र बनना ही है ? आओ, तुम्हें स्नान करने का सुरम्य स्थान बताता हूँ, स्नान के लिए उपयुक्त जल बताता हूँ...। एकबार स्नान किया नहीं कि पुनः स्नान करने की इच्छा कभी नहीं होगी । इसकी आवश्यकता भी नहीं लगेगी। तुम ऐसे पवित्र बन जाओगे कि वह पवित्रता कालान्तर तक चिरस्थायी बन जाएगी।
लो यह रहा समता का कुड ! यह उपशम के अथाह जल से भरा पड़ा है । इसमें प्रवेश कर तुम सर्वागीण स्नान करो । स्वच्छंद बनकर इसकी उत्ताल तरंगों के साथ जी भरकर केलि-क्रीडा करो । तुम्हारी आत्मा पर लगा हुआ पाप-पंक धुल जाएगा और आत्मा पवित्र बन जाते विलम्ब नहीं लगेगा । साथ ही समकित की परम पवित्रता प्राप्त होगी।
* एकबार जिस आत्मा ने सम्यग्दर्शन की अमोध शक्ति पा ली, वह आत्मा कर्म के समरांगण में कभी पराजित नहीं होगी । ऐसी समकिती आत्मा कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति नहीं बांधती है ।
अंतःकोडाकोडी सागरोपम प्रमाण स्थिति से ज्यादा स्थिति नहीं बांधती है । यह उसकी सहज पवित्रता है ।।
मनुष्य को समता का स्नान करते रहना चाहिए । समता से समकित की उज्वलता मिलती है, जो स्वयं में ही आत्मा की उज्वलता और पवित्रता है । समतारस में निमज्जित आत्मा के तीन प्रकार के मल का नाश होता है ।
दृशां स्मरविषं शुष्येत्, क्रोधतापः क्षयं व्रजेत् । प्रौद्धत्यमलनाशः स्यात् समतामृतमज्जनात् ॥
-अध्यात्मसार दृष्टि में से विषय-वासना का जहर दूर होता है, क्रोध का आतप शांत हो जाता है और स्वच्छंदता की गंदगी धुल जाती है। बस, समता-कुण्ड में स्नान करने भर की देरी है ।
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