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________________ तृप्ति १२६ ऐसी भावित बन जाती है कि उस के लिये ज्ञान ज्ञानी का भेद नहीं रहता । ऐसी स्थिति प्राप्त करने के लिये प्रस्तुत अष्टक में बताये गये उपायों का जीवन में क्रमश: प्रयोग करना जरुरी है । सुखिनो विषयातृप्ता, नेन्द्रोपेन्द्रादयोऽप्यहो । भिक्षुरेकः सुखी लोके, ज्ञानतृप्तो निरंजनः ॥६॥६०॥ अर्थ :- यह आश्चर्य है कि विषयों से अतृप्त देवराज इन्द्र एवं कृष्ण भी सुखी नहीं हैं । संसार में रहा, ज्ञान से तृप्त एवं कर्ममल रहित साधु, श्रमण ही सुखी है । विवेचन :- संसार में कोई सुखी नहीं है । विषयवासना के विषप्याले गटगटानेवाला इन्द्र अथवा महेन्द्र, कोई सुखी नहीं है । निरंतर अतृप्ति की ज्वाला में प्रज्वलित राजा-महाराजा अथवा सेठ - साहुकार कोई सुखी नहीं है । भले तुम उन्हें सुखी मान लो । लेकिन तुम्हारी कल्पना कितनी गलत है, यह तो जब किसी सेठ साहूकार से जाकर पूछोगे, तभी ज्ञात होगा । " विश्वविख्यात घनो व्यक्ति हेनरी फोर्ड से एक बार किसी पत्रकार ने पूछा था ...." संसार में सभी दृष्टि से आप सुखी और संपन्न व्यक्ति हैं, लेकिन ऐसी कोई चीज है, जो श्राप पाना चाहते हैं फिर भी पा नहीं सके हैं ?" का कथन सत्य है । मेरे पास धन है, कीर्ति है, और अपार वैभव है । फिर भी मानसिक शांति का प्रभाव है । लाख खोजने पर भी ऐसा कोई संगी-साथी नहीं मिला, जिसके कारण मुझे शांति और मानसिक स्वस्थता मिले ।” हेनरी ने गंभीर बन, प्रत्युत्तर में कहा । विश्व के धनाढ्य और संपन्न व्यक्तियों को देखकर ऐसा कभी न मानो कि 'वे कितने सुखो और संपन्न हैं !' भौतिक पदार्थों के संयोग से शांति नहीं मिलतो । भले इन्द्रियजन्य सुख से तुम प्रसन्न होंगे, लेकिन कदापि न भूलो कि वे सुख क्षणभंगुर हैं और दुःखप्रद हैं । जब तुम उनकी अन्तर्वेदना का कहानी सुनोगे, तब तुम्हें अपनी घासफूस की छोटी झोंपड़ी / कुटिया लाख दर्जे अच्छी लगेगी, बजाय उनके विशाल बंगले और वैभवशाली भव्य रंगमहल के । उनकी धनिकता के बजाय तुम्हें अपनी दरिद्रता सौगुनी बेहतर महसूस होगी । धन, कीर्ति, वभव, विक्कार के पात्र लगेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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