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विषय प्रवेश
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पुद्गल के लाक्षणिक गुणों के पर्याय वर्ण के पाँच प्रकार हैं- काला, पीला, नीला, लाल और श्वेत। गन्ध के दो प्रकार हैं- सुगन्ध और दुर्गन्ध । रस के पाँच प्रकार हैंमीठा, कटु, खट्टा, कसैला और तिक्त। स्पर्श के आठ प्रकार हैंशीत, उष्ण, स्निग्ध, रुक्ष, गुरु, लघु, मृदु और कठोर। इस प्रकार इन चार लाक्षणिक गुणों की बीस पर्यायें हैं। जिस प्रकार गुणों की पर्याये होती हैं वैसे ही इन पर्यायों की अनन्त पर्यायें होती हैं। पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत है। किन्तु पयार्य रूप से अशाश्वत है। किन्तु अन्य दर्शनों में पुद्गल शब्द के स्थान पर प्रकृति, परमाणु आदि शब्द पाये जाते हैं। बौद्धदर्शन पुद्गल शब्द को जीव के अर्थ में स्वीकार करता है। उसमें “पोग्गलं पञति" नामक एक ग्रन्थ है, जिसमें जीवों के प्रकारों की चर्चा है। भगवतीसूत्र में कुछ स्थानों पर पुद्गल शब्द को जीव का वाचक माना गया है। किन्तु प्रस्तुत प्रसंग में उसे भौतिक तत्त्व का वाचक माना है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार पुद्गलस्तिकाय के चार भेद होते हैं : १. स्कन्ध; २. देश; ३. प्रदेश और ४. परमाणु।
परमाणु जब सम्पृक्त होते हैं तो वे स्कन्ध कहलाते हैं और स्वतन्त्र होते हैं तो परमाणु कहलाते हैं। १. स्कन्ध : पुद्गल स्कन्ध दो परमाणु से लेकर अनन्त परमाणु
के संयोग से निर्मित होते हैं। वे अनन्त हैं। २. देश : पुद्गल का एक अंश देश कहलाता है। ३. प्रदेश : स्कन्ध के अविभाज्य अंश को प्रदेश कहा जाता है। ४. परमाणु : पुद्गलास्तिकाय के स्कन्ध का निर्माण परमाणु के
संयोग-वियोग से होता है। फिर भी परमाणु अपना स्वतन्त्र रूप से अस्तित्व भी रखता है। पुद्गल संख्या की दृष्टि से अनन्त हैं। वे द्रव्य की अपेक्षा से अनन्त द्रव्य एवं क्षेत्र की दृष्टि से सम्पूर्ण लोकाकाश में व्याप्त हैं। पुद्गल काल की दृष्टि से अनादि, अनन्त हैं। भाव की अपेक्षा से रूप,
२३ अंगसूत्ताणि, खण्ड २, १३/४/५६ । २४ उत्तराध्ययनसूत्र ३६/१० ।
-भगवई (लाडनूं)।
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