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________________ उपसंहार ४११ और उपयोगात्मा अन्तरात्मा के स्वरूप की सूचक हैं। ____ जैनदर्शन में यद्यपि त्रिविध आत्माओं का उल्लेख आचार्य कुन्दकुन्द के काल से ही मिलता है, फिर भी प्राचीन आगमों में चाहे अन्तरात्मा, बहिरात्मा और परमात्मा जैसे शब्दों का प्रयोग न हुआ हो, किन्तु इन तीनों प्रकार के व्यक्तित्वों के स्वरूप-लक्षण का विवेचन विस्तार से मिलता है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में हमने जैनदर्शन में त्रिविध आत्मा की विकास यात्रा किस रूप में हुई है, इसका विस्तार से विवेचन किया है। इसमें हमने यह देखा कि आचार्य कुन्दकुन्द से प्रारम्भ करके स्वामी कार्तिकेय, पूज्यपाद देवनन्दी, योगीन्दुदेव, शुभचन्द्र आदि दिगम्बर आचार्य अपने ग्रन्थों में त्रिविध आत्मा की अवधारणा का उल्लेख करते रहे हैं। मात्र यही नहीं, इनके पश्चात् आशाधर, बनारसीदास, द्यानतराय, टोडरमल, भैया भगवतीदास आदि उत्तर-मध्यकालीन लेखकों ने भी त्रिविध आत्मा की अवधारणा की विस्तार से चर्चा की है। इस प्रकार हम देखते हैं कि त्रिविध आत्मा की अवधारणा को लेकर दिगम्बर परम्परा में निरन्तर चर्चा होती रही है। इस सबका उल्लेख भी हमने प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में विस्तार से किया है। यहाँ एक बात विशेष रूप से ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर परम्परा में त्रिविध आत्मा का यह उल्लेख सर्वप्रथम बारहवीं शताब्दी में आचार्य हेमचन्द्र के योगशास्त्र में मिलता है। इसके पूर्व किसी भी श्वेताम्बर आचार्य ने त्रिविध आत्मा की अवधारणा की कोई चर्चा नहीं की। आचार्य हेमचन्द्र के भी लगभग पाँच सौ वर्ष पश्चात् यशोविजय, आनन्दघन और देवचन्द्र जैसे श्वेताम्बर सन्त हुए हैं, जो त्रिविध आत्मा की अवधारणा की विस्तृत चर्चा करते हैं। इस आधार पर ऐसा लगता है कि त्रिविध आत्मा की यह अवधारणा दिगम्बर परम्परा के प्रभाव से ही श्वेताम्बर परम्परा में विकसित हुई है। इस प्रकार इस अनुसन्धान में हमने यह पाया है कि दिगम्बर परम्परा की अपेक्षा श्वेताम्बर परम्परा ने त्रिविध आत्मा की चर्चा में कम रूचि प्रदर्शित की है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का द्वितीय अध्याय त्रिविध आत्मा की अवधारणा के औपनिषदिक एवं बौद्ध परम्परा से तुलनात्मक अध्ययन के साथ-साथ श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में त्रिविध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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