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________________ त्रिविध आत्मा की अवधारणा एवं आध्यात्मिक विकास की अन्य अवधारणाएँ ३६३ उपशमन श्रेणी से और कषायों का क्षय करने हेतु क्षपक श्रेणी से आरोहण करता है। भपक श्रेणी पर आरूढ़ आत्मा दसवें गुणस्थान में अवशिष्ट सूक्ष्म लोभ का क्षय करके सीधे बारहवें गुणस्थान में पहुँच जाती है जबकि उपक्षम श्रेणी आरूढ़ आत्मा इस गुणस्थान में सूक्ष्म लोभ को उपशमित कर ग्यारहवें गुणस्थान में प्रवेश करती है। किन्तु बाद में उपशमित कषायों का उदय होने पर वहाँ से पतित हो जाती है। इस गुणस्थान की आत्मा उत्तम अन्तरात्मा के सामान ही है।६२ ११. उपशान्तमोह गुणस्थान उपशान्तमोह ग्यारहवां गुणस्थान है। इस गुणस्थानवर्ती आत्माएँ उपशम श्रेणी से आगे बढ़ती हैं। क्षपक श्रेणी की ओर अग्रसर होने वाली आत्माएँ दसवें गुणस्थान से इस श्रेणी में न आकर सीधे बारहवें गणस्थान में प्रविष्ट होती हैं। इसमें कषायों का उदय नहीं होने पर भी वे सत्ता में बनी रहती है। इसलिए इसे अशान्त कषाय छमस्थ वीतराग गुणस्थान भी कहा जाता है। शरदऋतु में सरोवर का जल मिट्टी के नीचे दब जाने से निर्मल और स्वच्छ दिखाई देता है, किन्तु उसकी स्वच्छता स्थाई नहीं होती।६३ अपितु कभी भी वह मिट्टी उसे गन्दा बना सकती है। सरोवर के जल की तरह मोहनीयकर्म के उपशम से साधक में उत्पन्न होने वाले परिणाम निर्मल होते हैं, किन्तु वे एक समयावधि के बाद पुनः दूषित हो जाते हैं। जैसे राख में दबी हुई अग्नि पवन के लगते ही राख के उड़ने पर पुनः प्रज्वलित हो जाती है, उसी तरह इस गुणस्थान का साधक पुनः पतित हो जाता है। इस गुणस्थान में मोहनीयकर्म की सत्ता तो होती है, किन्तु उसका उदय नहीं होता। इस गुणस्थान में मोहनीयकर्म के पुनः उदय में आने पर वह वीतरागदशा से पतित हो जाता है। ज्ञान, दर्शन आदि आत्म गुणों को आच्छादित करनेवाले कर्मों का उदय रहने के कारण इस गुणस्थान में साधक " गुणस्थान क्रमारोह श्लोक ७३ । ६२ विशेषावश्यकसूत्र गा. १३०२ ।। ' गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गा. ६१ । ६३ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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