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________________ त्रिविध आत्मा की अवधारणा एवं आध्यात्मिक विकास की अन्य अवधारणाएँ ३७७ क्रमशः छहों लेश्याओं की मनोभूमिकाओं का सटीक उदाहरण है। छहों मित्रों की मनोवृत्तियाँ क्रमशः लेश्याओं की परिचायक हैं। पूर्व की तीनों लेश्याएँ अशुभ भावों की प्रतीक हैं। चौथी और पांचवी लेश्या अन्तरात्मा के शुभभावों तथा अन्त की शुक्ललेश्या परमात्मा के विशुद्ध परिणामों की सूचक है। शुक्ललेश्या ही आत्मा से परमात्मा बनने का उपाय है। __इन षट्लेश्याओं में प्रथम तीन लेश्याएँ अशुभ मनोवृत्तियों की सूचक है। अतः वे बहिरात्मा के स्वरूप से तुलनीय हैं। इनमें कृष्णलेश्या को बहिरात्मा की निम्नतम अवस्था कह सकते हैं। नीललेश्या बहिरात्मा की मध्यम अवस्था है और कपोतलेश्या उस बहिरात्मा की सूचक है, जो अन्तरात्मा की दिशा में अभिमुख है। तेजालेश्या जघन्य अन्तरात्मा, पद्मलेश्या मध्यम अन्तरात्मा और शुक्ललेश्या उत्कृष्ट अन्तरात्मा की सूचक है। ज्ञातव्य है कि अपेक्षा भेद से सयोगीकेवली परमात्मा भी शुक्ललेश्यावाले कहे जाते हैं, इस दृष्टि से शुक्ललेश्या परमात्मा की भी सूचक है। ६.२ कर्म-विशुद्धि के दस स्थान (गुणश्रेणियाँ) आध्यात्मिक विकास की एक अन्य अवधारणा का गुणश्रेणी के रूप में उल्लेख है। गुणश्रेणियों को कर्म विशुद्धियों के स्थान भी कहा जाता है। जैनदर्शन में सर्वप्रथम आचारांगनियुक्ति और उसके पश्चात् उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र और षट्खण्डागम आदि में इन दस अवस्थाओं का उल्लेख मिलता है। जैनदर्शन में आध्यात्मिक पतन और आध्यात्मिक विकास का मूल कारण कर्मबन्ध है। आत्मा जैसे कर्मरुपी मल से विशुद्ध होती है, वैसे ही उसका आध्यात्मिक विकास होता है। यहाँ त्रिविध आत्मा की अवधारणा में आध्यात्मिक विकास की सूचक अन्तरात्मा है, क्योंकि बहिरात्मा आध्यात्मिक पतन और परमात्मा आध्यात्मिक पूर्णता की अवस्था है। इस प्रकार आध्यात्मिक विकास की सूचक मात्र अन्तरात्मा को ही माना जा सकता है। जैनदर्शन में कर्मविशुद्धि के जिन दस स्थानों या गुणश्रेणियों की चर्चा है वहाँ उनका सम्बन्ध अन्तरात्मा से ही है। अन्तरात्मा की कर्मविशुद्धि के आधार पर ही ये दस अवस्थाएँ निर्मित की गई हैं। यद्यपि इनमें 'जिन' एक ऐसी अवस्था है जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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