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________________ त्रिविध आत्मा की अवधारणा एवं आध्यात्मिक विकास की अन्य अवधारणाएँ ३७५ निष्पक्ष होता है। वह न किसी के प्रति राग करता है और न द्वेष। वह निर्वैर, निर्मम, निश्छल, निःस्वार्थ और वीतरागी होता है। शत्रु पर भी वह करूणा-भाव रखता है। वह जगत् के कल्याण की भावना से युक्त होता है। वह निन्दा, विकथा से परे और पाप प्रवृत्तियों से सर्वथा मुक्त होता है।६ शुक्ल-लेश्यावाला व्यक्ति उपशान्तए जितेन्द्रिय एवं प्रसन्नचित्त होता है। वह अकषायी होता है। वह इष्टानिष्ट, सम्पत्ति-विपत्ति, मान-अपमान, शत्रु-मित्र, निन्दा-स्तुति आदि सभी स्थितियों में समभाव से जीता है। वह पक्षपात से रहित होता है। शुक्ललेश्या का वर्ण पूर्णिमा की चाँदनी, शंख, स्फटिकमणि, कुन्दपुष्प, दुग्धधारा तथा रजतहार के समान शुभ्र होता है। उसका रस मिश्री, खजूर, दाख एवं क्षीर से अनन्तगुना अधिक मधुर होता है। इसकी गन्ध केवड़े जैसे सुगन्धित पुष्पों की गन्ध से अनन्तगुना इष्ट होती है। इसकी सुगति होती है। इस लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट मुहूर्त अधिक तेंतीस सागरोपम की होती है।° शुक्ल लेश्या से देवगति या सिद्धगति प्राप्त होती है। . जैन दार्शनिकों ने तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या - इन तीनों लेश्याओं को धर्मलेश्या कहा है। इन तीनों लेश्याओं के रंग क्रमशः भारतीय संस्कृति की मुख्य तीन परम्पराओं अर्थात् हिन्दू, बौद्ध और जैन के परिचायक है। ये तीनों शुभलेश्याएँ हैं। आत्मविकास के क्षेत्र में इन शुभलेश्याओं के रंगों की विशिष्ट महत्ता परिलक्षित होती है। तेजोलेश्या का वर्ण लाल है। यह आत्म-प्रगति की प्रतीक है। आत्म-विकास करनेवाले वैदिक परम्परा के सन्यासी गैरिक या लाल रंग के वस्त्र धारण करते हैं। पद्मलेश्या का वर्ण पीला है। पीले वर्ण का ध्यान करने से उत्तेजना का अभाव हो जाता है एवं आत्मा की दिव्यज्योति प्रकट होती है। बौद्ध भिक्षु पीले वस्त्र धारण करते हैं। शुक्ललेश्या का वर्ण श्वेत है। श्वेत वर्ण आत्मविशुद्धि का प्रतीक है। इसलिये जैन परम्परा में श्रमण-श्रमणीवृन्द के लिये श्वेत ४६ वही । ५० वही ३४/३६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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