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________________ ३४८ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा को लेकर कुछ अन्तर भी है। यहाँ भी ज्ञातव्य है कि जैन परम्परा में तीर्थकर के लिए बुद्ध शब्द का प्रयोग भी अनेक स्थलों पर प्राप्त होता है। इसी कारण परमात्मा के लिए अर्हत् शब्द का प्रयोग जैन और बौद्ध परम्परा में समान रूप से हुआ है। दोनों की समानता व असमानता की इस सामान्य चर्चा के पश्चात् हम डॉ. रमेशचन्द्र गुप्ता की पुस्तक 'तीर्थकर, बुद्ध और अवतार' के आधार पर दोनों की कुछ विशिष्टताओं और अन्तर की चर्चा करेंगे।७३ २. तीर्थकर एवं बुद्ध की अन्य समानताएँ १. जहाँ अन्धक और उत्तरापथक बौद्धों का मानना है कि परमात्मा के उच्चार प्रश्राव की गन्ध अन्य गन्धों से विशिष्ट होती है; वहाँ जैन परम्परा भी यह स्वीकार करती है कि तीर्थंकर परमात्मा का उच्चार प्रश्राव विशिष्ट गन्ध से युक्त होता है। _ 'कथावस्तु' के १८वें वर्ग में बताया है कि बुद्ध एक शब्द भी नहीं बोले। इसी मत के कारण वे लोकोत्तरवादी कहे जाते हैं। जैनियों के दिगम्बर सम्प्रदाय का भी यह मानना है कि तीर्थंकर परमात्मा केवल्य की उपलब्धि के पश्चात् कुछ भी नहीं बोलते। प्रभु के शरीर से एक विशिष्ट ध्वनि निःसृत होती है। समवसरण में सभी प्राणी उसे अपनी-अपनी भाषा में समझ जाते हैं। ३. बौद्धों का मानना है कि चरमभविक बोधिसत्व तुषित देवलोक से बुद्ध होने के लिए मनुष्यलोक में अवतीर्ण होता है। जैनियों का यह मानना है कि जिस भव्य आत्मा ने तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन किया हो, वह देवलोक से मनुष्यलोक में अवतीर्ण होती है। किन्तु जैन परम्परा का यह भी मानना है कि तीर्थकर नरक से भी मनुष्यलोक में जन्म ले सकते हैं। ४. बौद्ध धर्म की मान्यता है कि भावी बुद्ध पूर्व बुद्ध के सन्मुख यह निश्चय करता है कि “मैं बुद्ध होऊँगा।" पश्चात् वह आत्मा अन्य जन्मों में दस पारमिताओं की साधना करती हुई ७७३ 'तीर्थकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा : तुलनात्मक अध्ययन' पृ. २५५-५८ । -डॉ. रमेशचन्द्र गुप्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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