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________________ परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार २६६ अर्हत् परमात्मा के भी दो भेद करते हैं - सयोगीकेवली और अयोगीकेवली। जब अर्हत परमात्मा काययोग में स्थित रहते हुए सूक्ष्मक्रिया नामक शुक्लध्यान के तृतीय चरण में स्थित रहते हैं, तब तक वे सयोगी जिन या सयोगीकेवली कहे जाते हैं, किन्तु जब वे शुक्लध्यान के क्रिया-निवृत्ति नामक चतुर्थ चरण में प्रवेश करके समस्त योगों का निरोध करने के साथ ही अवशिष्ट अघातीकों की प्रवृत्तियों को क्षय करते हैं, तब वे अयोगी केवली अर्हत् परमात्मा कहे जाते हैं। जब समस्त कर्मों को क्षीण करके शरीर का भी त्याग हो जाता है, तब सिद्ध परमात्मा की अवस्था प्राप्त होती है। इस प्रकार स्वामी कार्तिकेय ने अर्हत् के दो भेद सयोगी केवली, अयोगी केवली तथा सिद्ध परमात्मा के स्वरूप का निर्वचन किया है। सिद्ध परमात्मा के लिये वे कहते है कि जिन्होंने समस्त कर्मों के पुंज का क्षय करके मुक्ति-सुख को प्राप्त किया है, वे सिद्ध परमात्मा हैं।३४ ५.२.३ आचार्य पूज्यपाद के अनुसार परमात्मा का स्वरूप : आचार्य पूज्यपाद देवनन्दी ने परमात्मा के विभिन्न गुणवाचक नामों का उल्लेख किया है। वे निम्न हैं : “निर्मल, केवल, शुद्ध, विविक्त, प्रभु, अव्यय, परमेष्ठी, . परात्मा, परमात्मा, ईश्वर, जिन इत्यादि।"२५ - वे लिखते हैं कि परमात्मा सर्व इन्द्रियों के विषयों में प्रवर्तित चित्तवृत्ति को रोककर बहिर्जल्प एवं अन्तर्जल्पादि संकल्प-विकल्पों से रहित कहे गए हैं। परमात्म स्वरूप आत्मा में ही विद्यमान है। वे बाह्य में कहीं उपलब्ध नहीं होते। परमात्मा अनन्तआनन्द, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य से युक्त होते हैं। आत्मा स्वयं शक्तिरूप में परमात्मा है। उसी शक्तिरूप परमतत्त्व की ३४ णिस्सेसमोह विलए, खीणकसाए य अंतिमे काले । ससरूवम्मि णिलीणो, सुक्कं ज्झाएदि एयत्तं ।। ४८३ ।। ३५ 'निर्मलः केवलः शुद्धो विविक्तः प्रभुख्ययः । परमेष्टी परात्मेति परमात्मेश्वरो जिनः ।। ६ ।।' -वही । -समाधितन्त्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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