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________________ अन्तरात्मा का स्वरूप, लक्षण और प्रकार २७६ स्त्रीकथा, राजकथा, चोरकथा, भोजनकथा आदि वचन की अशुभ प्रवृत्ति या अशुभ वचन का निरोध करना वचनगुप्ति है।०३ इसके निम्न ४ प्रकार हैं। १. सत्य वचनयोग; २. असत्य वचनयोग; ३. मिश्र वचनयोग; और ४. व्यवहार वचनयोग।०४ ३. कायगुप्ति उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार बैठने, उठने, सोने एवं पाँचों इन्द्रियों की प्रवृत्तियों में शारीरिक क्रियाओं से निवृत्त होना कायगुप्ति है।०५ नियमसार के अनुसार से बन्धन, छेदन, मारण, आकुंचन और प्रसारणादि शरीर की क्रियाओं से निवृत्त होना कायगुप्ति है।०६ उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार संरम्भ, समारम्भ और आरम्भयुक्त कायिक प्रवृत्तियों का निरोध कायगुप्ति है। ४. दस मुनिधर्म इसके अतिरिक्त सर्वविरत मुनि को क्षमादि निम्न दस मुनिधर्मों का पालन करना चाहिये : १. क्षमा; २. मार्दव; ३. आर्जव; ४. त्याग ५. तप; ६. संयम; ७. सत्य; ८. शौच; ६. अकिंचन; और १०. ब्रह्मचर्य। ५. बाईस परिषह साथ ही अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों में निम्न २२ परिषहों को सहन करना चाहिये : १.क्षुधापरिषह; २.पीपासापरिषह; ३.शीतपरिषह; ४.उष्णपरिषह; ५.दंशमशकपरिषह; ६.अचेलपरिषह; ७.अरतिपरिषह; ८.स्त्रीपरिषह; ६.चर्यापरिषह; १०.निषद्यापरिषह; ११.शय्यापरिषह; १२.आक्रोशपरिषह; १३.वधपरिषह; १४.याचनापरिषह; १५.अलाभपरिषह; १६.रोगपरिषह; २०३ नियमसार ६७ । २०४ उत्तराध्ययनसूत्र २४/२२ एवं २३ । २०५ वही २४/२४ एवं २५ । २०६ नियमसार ६८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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