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________________ औपनिषदिक, बौद्ध एवं जैन साहित्य में आत्मा की अवस्थाएँ १३६ की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रण उपलब्ध होता है। बौद्धदर्शन मुख्यरूप से दो भागों में विभक्त है : (१) श्रावकयान या हीनयान; और (२) बुद्धयान या महायान। - हीनयान का आदर्श आध्यात्मिक विकास के द्वारा अर्हत् पद की प्राप्ति है, जबकि महायान का लक्ष्य बुद्धत्व की प्राप्ति है। इन दोनों अवधारणाओं में मुख्य अन्तर यह है कि जहाँ हीनयान अर्हत् पद की प्राप्ति के द्वारा व्यक्ति के वैयक्तिक निर्वाण को ही साधना का चरमलक्ष्य मानता है, वहाँ महायान का लक्ष्य बुद्धत्व को प्राप्त करके लोकमंगल की भावना है। महायान का साधक अपने वैयक्तिक निर्वाण की अपेक्षा नहीं रखता है। वह संसार के सभी प्राणियों को दुःखों से मुक्त करके ही मुक्त होना चाहता है। उसकी रुचि लोकमंगल में होती है, वैयक्तिक निर्वाण उसके लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है। जबकि हीनयान के साधक का लक्ष्य स्वयं का आध्यात्मिक विकास करते हुए अर्हत् अवस्था या निर्वाण को प्राप्त कर लेना है। आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से हीनयान सम्प्रदाय में चार भूमियों (अवस्थाओं) का उल्लेख मिलता है। महायान सम्प्रदाय आध्यात्मिक विकास की दस अवस्थाओं को मानता है। हम क्रमशः दोनों ही परम्पराओं में प्रस्तुत आध्यात्मिक विकास की इन अवस्थाओं की विस्तृत चर्चा करेंगे। २.२.२ हीनयान सम्प्रदाय की स्रोतापन्न आदि चार भूमियाँ हीनयान सम्प्रदाय में आध्यात्मिक विकास की भूमियाँ जैनधर्म के समान हैं। बौद्धधर्म में भी संसार के प्राणियों को दो भागों में बाँटा गया है५ - पृथक्जन (मिथ्यादृष्टि) और आर्य (सम्यग्दृष्टि)। मिथ्यादृष्टि या पृथक्जन की अवस्था वस्तुतः व्यक्ति के अविकास की अवस्था है। व्यक्ति की आध्यात्मिक विकास यात्रा तभी प्रारम्भ होती है, जब वह सम्यग्दृष्टि को स्वीकार करके निर्वाण मार्ग पर आरूढ़ होता है। फिर भी सभी मिथ्यादृष्टि समान नहीं होते हैं। ५ पं. सुखलालजी ने भी इसे मार्गानुसारी अवस्था से तुलनीय माना है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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