SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ _४६२ आचारांगसूत्र ४०, भगवतीसूत्र *" आदि प्राचीन जैन आगमों में प्रकारान्तर से इन तीनों अवस्थाओं का अन्य नामों से प्रकीर्ण उल्लेख मिल जाता है । फिर भी आत्मा के इस त्रिविध वर्गीकरण का प्रमुख श्रेय तो आचार्य कुन्दकुन्द * को ही जाता है । दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा के परवर्ती आचार्यों ने उन्हीं का अनुकरण किया है। स्वामी कार्तिकेय स्वामी कार्तिकेय ४६३, योगीन्दुदेव ४६४, पूज्यपाद *९५ अमृतचन्द्र*e८ ४६५ } .४६६ शुभचन्द्राचार्य४६७, गुणभद्र , हेमचन्द्र ४६६ अमितगति, देवसेन", ब्रह्मदेव", आनन्दघन१०३, देवचन्द्र और यशोविजय' आदि सभी ने आत्मा के तीन प्रकारों का अपनी-अपनी रचनाओं में उल्लेख किया है। प्रस्तुत गवेषणा में हम इस सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा करेगें । ४६१ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा ५०५ ४६० आचारांगसूत्र में मूढ़, पण्डित, धीर, अन्यदर्शी के प्रकीर्ण उल्लेख हैं । भगवतीसूत्र में आठ आत्माओं का उल्लेख है । ४६२ मोक्खपाहुड गा. ४ ( नियमसार गा. १४६ - ५० ) । ४६३ स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा गा. १६२ । ४६४ परमात्मप्रकाश १३ १४, १५ एवं योगसार ६ । ।। अध्याय १ समाप्त ।। Jain Education International ४६५ समाधितंत्र गा. ४-५ । ४६६ योगशास्त्र द्वादशप्रकाश ६ । ४६७ ज्ञानार्णव गा. ५ । ४६८ ४६६ ५०० योगसार प्राभृत गा. ३४, ३६, ४० एवं ४१ । ५०१ आराधनासार ८५ । ५०२ ब्रह्मविलास, परमात्म छत्तीसी पृ. २२७ । ५०३ आनन्दघनग्रन्थावली पद ६७ एवं सुमति जिन स्तवन । ५०४ विचारत्नसार प्रश्न १७८ (ध्यानदीपिका चतुष्पदी ४, ८, ७ ) । ५०५ अध्यात्मपरीक्षा १२५ । समयसार नाटक गा. १०/८५-८६ । आत्मानुशासनम् श्लोक १६२-६३ पृ. १८४ से १६६ । For Private & Personal Use Only , ५०४ www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy