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________________ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा की प्राप्ति नहीं होती; तब तक व्यक्ति आध्यात्मिक विकास की यात्रा पर अपने कदम आगे नहीं बढ़ा सकता है। विवेकशक्ति के विकास को ही आध्यात्मिक विकास का सहगामी माना जा सकता है और विवेक सामर्थ्य द्रव्यमन की संरचना पर निर्भर है । ७२ जैन अर्द्धमागधी आगम साहित्य में भगवतीसूत्र में अष्टविध आत्माओं का एक विशिष्ट वर्गीकरण उपलब्ध होता है । यद्यपि यह वर्गीकरण आत्मा के आध्यात्मिक विकास की विविध स्थितियों को सूचित नहीं करता; किन्तु इससे इस बात का विचार अवश्य किया जा सकता है कि आत्मा की विविध शक्तियाँ क्या हैं और वे किस-किस रूप में अभिव्यक्त होती हैं? भगवतीसूत्र में आत्मा के निम्न आठ भेदों का उल्लेख मिलता है २७१ _२७२ १. द्रव्यआत्मा' आत्मा के तात्त्विक स्वरूप को अथवा उसकी सत्ता को द्रव्यात्मा के रूप में जाना जाता है । आत्मद्रव्य को ही द्रव्यात्मा कहा गया है । द्रव्यात्मा सजीव चेतन सत्ता की सूचक है। आत्मा की विविध शक्तियाँ जिसमें सन्निहित हैं, वही आत्मद्रव्य है और उसे ही यहाँ द्रव्यात्मा के रूप में सूचित किया गया है । २. उपयोगात्मा आत्मा की शक्तियाँ दो प्रकार की हैं ज्ञानात्मक तथा अनुभूत्यात्मक । इन दोनों ही शक्तियों का समन्वितरूप उपयोग आत्मा है। जैनदार्शनिक ग्रन्थों में आत्मा का लक्षण उपयोग माना है । 'उपयोग' जैनदर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है । यह चेतना का पर्यायवाची है । उपयोग यद्यपि आत्मा का गुण है किन्तु गुण और गुणी में अभेद मानने के कारण जैन दार्शनिकों ने उसका तादात्म्य आत्मा से मानकर उपयोग को ही आत्मा का एक भेद माना है । वस्तुतः उपयोग और आत्मा एक दूसरे से भिन्न नहीं हैं। आत्मा का चेतनात्मक व्यापार ही उपयोग है। वस्तुतः उपयोग आत्मा की पर्याय दशा का ही सूचक है। किन्तु द्रव्य और पर्याय में कथंचित् अभेद होने के कारण यहाँ उपयोगात्मा ऐसा एक भेद किया गया है। — २७१ भगवतीसूत्र १२/१०/४६७ । २७२ 'अट्ठविहा आयापन्नता, तंजहा अवियाया कसायाया । जोगाया उवयोगाया णाणाया दंसणाया चरित्ताया वीरियाया ।। १० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only -भगवतीसूत्र १२ । www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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