SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय प्रवेश किया गया है।२२५ किन्तु वह सामर्थ्य चैतसिक ही होगी। इससे यह भी प्रतिफलित होता है कि आत्मा की शक्ति या सामर्थ्य निर्णयात्मक है, जिसे प्रकट करने का प्रयत्न वीर्याचार के द्वारा होता है। उत्तराध्ययनसूत्र के १७वें ‘पापश्रमणीय' नामक अध्ययन में निम्न पाँच आचारों का उल्लेख है - ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार।२२६ यद्यपि जैनदर्शन के परवर्ती ग्रन्थों में चारित्र के अन्तर्गत तप एवं वीर्य का समावेश कर लिया गया है; लेकिन उत्तराध्ययनसूत्र में इनका अलग वर्णन मिलता है।२७ अतः इनमें रही हुई आंशिक भिन्नता को जानना यहाँ उचित प्रतीत होता है। साधना के क्षेत्र में वीर्याचार पुरुषार्थ रूप है। वह स्वशक्ति का प्रकटीकरण है। अतः वह प्रवृत्ति का परिचायक और विधि रूप है। उत्तराध्ययनसूत्र में साधक के लिए ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा तप के क्षेत्र में जिस पुरुषार्थ के लिए प्रेरणा दी गई है, वही वीर्याचार है। अनन्तवीर्य या अनन्तशक्ति आत्मा का स्वलक्षण है२८ और इस अनन्तशक्ति (अनन्तवीर्य) की क्षमता को योग्यता के रूप में परिणत करने हेतु पुरुषार्थ करना वीर्याचार कहलाता है। दूसरे, अनन्तवीर्य आत्म-निर्णय की शक्ति है और उस शक्ति को विषय-वासनादि बाह्य तत्त्वों से अप्रभावित रखने का प्रयत्न ही वीर्याचार है।२२६ अन्तरात्मा इसी की साधना करती है। . यहाँ तक आत्मा के उपयोग, लक्षण और अनन्त-चतुष्टय की जो चर्चा की गई है, वह निश्चयनय के आधार पर आत्मा के स्वलक्षणों की चर्चा है। आगे आत्मा की स्वभाव एवं विभाव परिणति की चर्चा करेंगे। २२६ २२५ उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ५६१ । १६ उत्तराध्ययनसूत्र १७/२० । २२७ उत्तराध्ययनसूत्र, शान्त्याचार्य की टीका पत्र ५५६ । २२८ योगसार २२ । ६ (क) अध्यात्मरहस्य २२; (ख) समयसार, आत्तख्याति टीका ७; (ग) प्रवचनसार २/६६-१००; (घ) नियमसार ६६ एवं १८१; और (च) इष्टोपदेश २१ । २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy