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________________ ४२५ ५.१.१८९ ४.(४१).१६१ ७.(१७).२५९ ४.(६६).१६९ १०.३६.३४६ ६.३१.२४० २.६६.९४ ४.४१.१६७ ४.४१.१६७ परिशिष्टानि विलक्षण ४.(८४).१७६ व्याततलक्षणोंसे रहित, अद्भुत विस्तृत विलासमन्दिर ६.(३६).२३५ ख्यातुक्षिकाक्रीडाभवन फाग विविधव्याहारपेशला ४.(४१).१६१ व्यामुक्तनाना प्रकारके शब्दोंमें कुशल लटकते हुए विवेकवार्ता १.(२६).१५ व्यालोलभेदवार्ता, हिताहितका ज्ञान चंचल विशङ्कट २.(१).४८ व्याहूतविशाल बुलाया हुआ विशासित कुशासन १.४.३ [श] मिथ्यामतको नष्ट करनेवाला शतमन्युविशिख ९.३४.३४५ सैकड़ों शोकोंसे सहित, इन्द्र बाण शम्पावल्लीविशेषकायमाण ८.(१७)२८६ बिजलीरूपी लता तिलकके समान आचरण करनेवाला शम्बरविश्व ४.३८.१६५ जल ज्योतिषशास्त्रमें प्रसिद्ध महायोग शंवरारिविष २.(८५).८३ __ काम, जलके शत्रु जल, जहर शर्कराविषराशि ५.(८).१९३ _धूलि ज़हरकी राशि, जलकी राशि शर्कराविषराशि ७.२६.२७० शक्कर समुद्र शर्मभोगेच्छाविष्वाण ३.५०.१३० सुख भोगकी इच्छा शातकुम्ममयविनम्म १.(८२).३७ __ सुवर्णमय विश्वास शाश्वतपदवृत्त १.१२.६ मोक्ष वृत्तिआजीविका मयूर, अग्नि वृन्दारकवृन्द ४.(८२).१७४ शीतरोचिष्देवसमूह चन्द्रमा व्यजनपचनपोत २.८.५५ शुक्तिकाशकलपंखेकी मन्दवायु सीप के टुकड़े ज्याकीर्ण ५.२.१८९ शुचिबिखरे हुए उज्ज्वल, अग्नि म्याघ्रचर ६.२२.२३३ शुद्धान्तपहलेका व्याघ्र अन्तःपुर ३.(४५).११३ ३.(४५).११३ १.५२.३४ भोजन ६.(२२).२३० १.(५७).२९ ७.९.२५८ शिखी २.(८५).८३ ६.२८.२३८ ५.(१९).१९९ २.(८५).८३ १.३१.१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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