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________________ ४२२ पुरुदेवचम्पूप्रबन्धे महारजत४.६७.१८१ मुक्तावली २.(५१)६९ बहुत भारी चाँदी, सोना ___ एक व्रत महारजत महीध्र१.(४३).२३ मुक्तोपम १.(१६).११ सोने का पर्वत-सुमेरु उपमारहित, मोतियों की उपमा से महास्थपति २.५३.८६ युक्त, मुक्त-सिद्ध परमेष्ठी की स्थपतिरत्न-प्रधानतक्षक उपमा से सहित महिषी३.(१५).१०३ मुनिविकर्तन १.(५५).२७ पट्टरानी, भैंस मुनिरूपी सूर्य-श्रेष्ठ मुनि महीकमन२.(१०).५२ मुष्टिसमीक ९.३२.३४४ राजा मुष्टि युद्ध महोदक२.५०.६९ मेखला ६.(२७).२३१ उत्कृष्ट फल से युक्त पर्वत की कटनी, कटिसूत्र-करधनी माकन्दतरुसंदोह१.(१३).९ मेचकपक्षक ७.४०.२७७ आम के वृक्षों का समूह कृष्णपक्ष मातुलानी२.(६८).७६ मेचकरुचि ५.(३७).२०८ मामा की स्त्री कृष्णकान्ति मातृचर२.(५०).६८ मोचाफल १.१०.५ भूतपूर्व माता का जीव केला मानस३.५०.१३० मोहक्षमावल्लम १.५.४ मानसिक-मनसम्बन्धी मोहरूपी राजा मानस ५.३३.२१५ मानससरोवर, चित्त मार-काम २.२०.६४ यवनिकाविभ्रम ५.(३९).२१० मार २.८५.८३ परदा का सन्देह काम, मारने वाला युगायत ६.(७३).२४८ मार्गण २.५.५१ युग-जुवारी के समान लम्बा बाण, गति आदि १४ मार्गणा योगयोग्य ८.(३५)२९३ मीनकेतन २.१०.५२ ध्यानके योग्य कामदेव [र] मृदुलतालकृतमुख १.१.१ कोमल लताओं से अलंकृत अग्रभाग २.५.५० वाला लाल, अनुराग से युक्त मृत्स्ना७.(१७).२५९ रजतमहीधर १.(४३)२३ अच्छी मिट्टी विजयाध पर्वत मुक्ता६.५.२२५ रजताचल १.(१३).९ मुक्तजीव, मोती विजया पर्वत मुक्ताधिकशोमांचित७.(३).२५३ रजोराजी ९.१८.३३६ मोतियों की अधिक शोभा से धूलिपंक्ति अंचित, मुक्तजीवों की अधिक रत्नकोटीर कोटि ६.१८.२३१ शोभा से अंचित रत्नमय मुकुट की कलँगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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