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________________ ४२० पुरुनन्दन भरत पुलोमजाइन्द्राणी पुष्पंधर भ्रमर पेयतरु नारियलका वृक्ष, अथवा ताड़वृक्ष पैतृष्वस्त्रीय बुआका पुत्र प्रकटितदशावतार जिसमें दश जन्मोंका वृत्तान्त प्रकट किया गया था, जिसमें दशा - बत्तीका अवतार प्रकट था प्रकामोज्ज्वला अत्यन्त उज्ज्वल प्रकृति प्रजाजन प्रकृति मन्त्री अदि, प्रजाजन प्रचुरोर्मिकात्रज बहुत भारी तरंगों का समूह, बहुत अंगूठियोंका समूह प्रतीक शरीर प्रत्यग्दिशा - पश्चिमदिशा प्रत्यर्थिदावानल प्रभाताब्ज प्रातःकालका चन्द्रमा शत्रुरूपी वनको भस्म करने वाली वनाग्नि प्रमदालिमधुरालाप सखियोंका मधुर भाषण, हर्ष विभोर भ्रमरोंका मधुर शब्द प्रवाल मूँगा, किसलय प्रवीचार कामसेवन Jain Education International पुरुदेव चम्पूप्रबन्धे ६.३४.२४२ ५. (२४).२०२ ८.(१).२८० २. (२१).५८ प्राची २.३७.७६ १.१२.६ ७. (८). २५५ ३.४.९९ ४. (४१).१६१ ३. (४२).११० १. (१३).७ हिमगिरि ५. (३७).२०९ प्रौढध्वान्त १.३६.२४ २. (१).४८ २. (३५).६३ प्रव्रज्या ५. (४). १९० ३.५०.१३० दीक्षा प्रस्थ शिखर, मानभेद प्रागल्भ्य गम्भीरता पूर्वदिशा प्रालेयादि गाढ अन्धकार, भारी अज्ञान प्रौढशोभनखरांशुवैभव फणीश्वर धरणेन्द्र बन्धुजीव बल बम्मरी जिसके नखोंकी किरणोंका वैभव अत्यन्त शोभमान है, जिसकी तीक्ष्ण किरणोंका वैभव अत्यन्त शोभमान है। [ फ] भ्रमरी दुपहरियाका फूल, भाइयोंका जीवन बलभद्र बलघ्न बलरिपु इन्द्र बलारि इन्द्र बलार्णव सेनारूपी समुद्र बर्हिमुख देव बहुलोह [ ब ] बहुत लोहा, बहुत तर्क For Private & Personal Use Only १.४३.३० १. (१३).८ १.१०.५ ४.३८.१६५ १.४२.२८ १.३.३ ४.४२.१६७ ८. (१२). २८५ ७. (३).२५३ १.२४.१७ २.(४९).६८ ६.९.२२६ ७.२५.३०८ ५. (३७).२०८ १०.१८.३५८ ४. (९१).१७८ ४.६७.१८१ www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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