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________________ जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम पार्थिवी आदि धारणाओं का सूत्र में जो संक्षिप्त लक्षण दिया गया है, उसमें तद्गत मूल तत्त्व का ही संकेत है। उतने मात्र से अभ्यासी के लिए उनके विशद रूप को स्वायत्त करना संभव नहीं है। अतः उन सूत्रों की हिन्दी में जो व्याख्या की गई है, उसमें धारणाओं की परिकल्पनाओं का विस्तार से उल्लेख है । प्राचीन आचार्यों ने इन धारणाओं का जो वर्णन किया है, 'मनोनुशासनम्' में तद्विषयक सूत्रों की व्याख्या में उसका संक्षिप्त रूप प्रांजल एवं सरल भाषा में प्रतिपादित किया गया है जो पाठकों एवं अभ्यासियों के लिए उपयोगी है। खण्ड : नवम पाँचवें प्रकरण में प्राणवायु की परिभाषा, इसके भेद, वायुविजय के साधन, कूर्म नाड़ी, कंठकूप, जिह्वाग्र, नासाग्र, चक्षु कमल तथा ब्रह्मरन्ध्र में वायुधारण लाभ आदि का विवेचन है । 'योगशास्त्र' में वायुविजय आदि के सन्दर्भ में जो विवेचन आया है, उसका परिमार्जित एवं लोकोपयोगी रूप में ग्रन्थकार ने विश्लेषण किया है। पातंजल योग का पहला अंग यम है । यम का अर्थ आत्मसंयम या अपने आप को हिंसा आदि से बचाना है । यमों के स्थान में जैनधर्म में महाव्रतों का उल्लेख है, व्रत के साथ जुड़ा हुआ महा शब्द उनकी विशेषता का द्योतक है। जैन धर्म में महाव्रत द्वारा व्रतों का वह रूप गृहीत है, जिसमें मन वचन, काय योग और कृतकारित अनुमोदित करण की दृष्टि से कोई भी अपवाद स्वीकृत नहीं है। वहाँ सब स्थितियों में सावद्यकार्यों के वर्जन का विधान है। महाव्रत शब्द पातंजल योग द्वारा निरूपित यमों की व्याख्या में प्रयुक्त हुआ है । वहाँ भी ऐसा ही माना गया है कि यम जब देश, काल, स्थिति आदि किसी भी अपेक्षा सर्वथा हिंसादि दोषों के वर्जन के साथ परिपालित होते हैं तब महाव्रत कहे जाते हैं। वहाँ कोई विकल्प या अपवाद स्वीकृत नहीं है। यहाँ जैन दर्शन और योग दर्शन की विचारधारा समानता पा लेती है। - 'मनोनुशासनम्' के रचयिता ने इस ग्रन्थ के छठे प्रकरण में महाव्रतों की परिभाषा, अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का स्वरूप, महाव्रतों की भावनायें, अणुव्रत की परिभाषा, क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचनता, ब्रह्मचर्य - दश रूपों से युक्त श्रमण धर्म का वर्णन किया है । 19 19. वही, 6.1-25 Jain Education International 21 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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