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________________ आचार्य हेमचन्द्र, योगप्रदीपकार व सकलचन्द्रगणि के साहित्य में ध्यानसम्बन्धी निर्देश खण्ड : सप्तम खण्ड:- सप्तम आचार्य हेमचन्द्र, योगप्रदीपकार व सकलचन्द्रगणि के साहित्य में ध्यानसम्बन्धी निर्देश Nitik अ) आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व एवं कृतित्व : - आचार्य हेमचन्द्र अपने युग के प्रभावक प्रतिभाशाली विद्वान्, जैनधर्म के अनन्य प्रभावक, धर्मनायक तथा अनेकानेक ग्रन्थों के रचयिता महान् पुरुष थे। गुजरात तथा तत्समीपवर्ती भू-भागों के महान् शासक सिद्धराज जयसिंह द्वारा वे विशेष रूप से सम्मानित थे। सिद्धराज का उत्तराधिकारी कुमारपाल उनका परम श्रद्धाशील अनुयायी था। आचार्य हेमचन्द्र का जन्म गुजरात में धुन्धुका नामक नगर में एक वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चाचिग था, जो वैष्णव धर्म में श्रद्धाशील थे। उनकी माता का नाम पाहिनी था। वे श्रद्धालु जैन श्राविका थीं। आचार्य हेमचन्द्र शैशवास्था में ही प्रखर प्रतिभाशाली थे। वे अपनी माता के साथ जैन उपाश्रय में जाते थे। आचार्य देवचन्द्र सूरि की उन पर दृष्टि पड़ी। उन्होंने अनुभव किया कि धर्मप्रभावना की दृष्टि से इस बालक का भविष्य बड़ा ही उज्ज्वल है। उन्होंने यह बात जैनसंघ के समक्ष व्यक्त की। आचार्य और सारे संघ के अनुरोध पर माता ने उन्हें दीक्षित होने की आज्ञा दी। उस समय उनके पिता घर पर नहीं थे। जब उन्हें ज्ञात हुआ तो वे सहज सहमत नहीं हुए। समस्त जैन संघ के अनुरोध पर उन्होंने दीक्षा की स्वीकृति प्रदान की। आचार्य देवचन्द्र सूरि द्वारा दीक्षित हुए। उनका नाम सोमचन्द्र रखा गया। वे विद्याध्ययन में निरत हुए। ज्ञानावरण के विशिष्ट क्षयोपशम के परिणाम स्वरूप उन्होंने थोड़े ही समय में जैन आगमों के साथ-साथ अनेक शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया। नागौर (राज.) में केवल बीस वर्ष की आयु में वे आचार्य पद पर अधिष्ठित हुए। तब उनका नाम हेमचन्द्र हुआ। ~~~~~~~~~~~~~~ 2 ~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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