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________________ शौरसेनी प्राकृत साहित्य में ध्यानयोग खण्ड : तृतीय है कि तत्त्वार्थसूत्र की श्लोकवार्तिक टीका में नवमें अध्याय के 36 वें सूत्र में अप्रमत्तसंयत "अप्रमत्तसंयतस्य" यह मूल पाठ भी नहीं दिया गया है। इस प्रकार धर्मध्यान के स्वामी को लेकर तत्त्वार्थसूत्र के भाष्यमान पाठ से श्लोकवार्तिक मान्य पाठ में अन्तर है। संक्षेप में षट्खण्डागम और धवला टीका की परम्परा और तत्त्वार्थ सूत्र के भाष्यमान की परम्परा भिन्न - भिन्न प्रतीत होती है। मूलाचार : मूलाचार दिगम्बर जैन परम्परा का श्रमणाचार विषयक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। यह शौरसेनी प्राकृत में रचित है। प्रथम मूल अंग आगम ‘आचारांग' के आधार पर रचित होने के कारण यह मूलाचार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसमें श्रमणों के आचार से सम्बद्ध विषयों का विस्तृत वर्णन है। मुनिधर्म की परम्परा दीर्घकाल पर्यन्त सुन्दर, समीचीन और उत्कृष्ट रूप में चलती रहे, इसलिए इस ग्रन्थ का प्रणयन हुआ। संयमी साधक मुनिदीक्षा ग्रहण करते समय श्रमणाचार की शुद्ध परम्परा को जाने, एतदर्थ आचार्य वट्टकेर ने इसकी रचना की। इसमें श्रमण-निर्ग्रन्थों की आचार संहिता का विस्तृत सुव्यवस्थित विशद रूप में वर्णन है। यह अचेल परम्परा की एक प्राचीन एवं प्रामाणिक रचना है। जिस प्रकार अन्यान्य प्राचीन आचार्यों तथा ग्रंथकारों का इतिहास हमें सुव्यवस्थित एवं प्रामाणिक रूप में प्राप्त नहीं होता है वही स्थिति आचार्य वट्टकेर के साथ भी है। परम्परा से ऐसा माना जाता है कि ये सम्भवत: चौथी-पाँचवीं शताब्दी के आस-पास हुए हों। कहा जाता है कि ये दक्षिण भारत में वट्टकेरी नामक स्थान के निवासी थे। वट्टकेर दिगम्बर परम्परा के मूलसंघ के प्रमुख आचार्य थे। 'मूलाचार' का अध्ययन-अनुशीलन करने से यह प्रतीत होता है कि ये बहुश्रुत, उच्चकोटि के सिद्धान्तवेत्ता मनीषी थे और उत्कृष्ट चारित्रवान धर्मनायक थे। दिगम्बर तथा श्वेताम्बर परम्परा के कतिपय ग्रंथों में 'मूलाचार' की कुछ गाथायें समान रूप में प्राप्त हैं। इसका कारण यह है कि भगवान महावीर के पश्चात् निर्ग्रन्थ परम्परा जब श्वेताम्बर - दिगम्बर इन दो भागों में विभक्त हुई तब दोनों ही परम्पराओं के आचार्यों को श्रुत कंठस्थ रूप में प्राप्त था। संघ के दो भागों में विभाजन ~~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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