________________
18. जेप्पि असेसु कसाय-बलु देप्पिणु अभउ जयस्सु ।
लेवि महव्वय सिवु लहहिं झाएविणु तत्तस्सु ॥ 19. देवं दुक्करु निय-धणु करण न तउ पडिहाइ ।
एम्वइ सुहु भुञ्जरणहं मणु पर भुजहिं न जाइ ॥
86 ]
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org