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________________ 9. कुञ्जर ! सुमरि म सल्लइउ सरला सास म मल्लि । कवल जि पाविय विहि-वसिण ते चरि माणु म मेल्लि ॥ 10. दिग्रहा जन्ति झडप्पडहिं पहिं मरणोरह पच्छि । जं अच्छइ तं मारिणम इं होसइ करतु म अच्छि ॥ 11. सन्ता भोग जु परिहरइ तसु कन्तहो बलि कीसु । तसु दइवेग वि मुण्डियउं जसु खल्लिहडउ सीसु ॥ 12. तं तेत्तिउ जलु सायरहो सो तेवडु वित्थारु । तिसहे निवारणु पलुवि नवि पर धुठ्ठाइ प्रसारु ॥ 13. किर खाइ न पिअइ न विहवइ धम्मि न वेच्चइ रुपडउ । इह किवणु न जाणइ जइ जमहो खणण पहुच्चइ दूअडउ॥ 14. कहिं ससहरु कहिं मयरहरु कहिं बरिहिणु कहि मेहु । दूर-ठियाहं वि सज्जरणहं होइ असड्ढलु नेहु ॥ 15. सरिहिं न सरेहिं न सरवरेहि नवि उज्जारण-वणेहिं । देस रवण्णा होन्ति वढ ! निवसन्तेहिं सु-अरहिं ॥ 16. एक्क कुडुल्ली पहिं रुद्धी तहं पञ्चहं वि जुअंजुम बुद्धी । बहिणुए तं घरु कहिं किम्व नन्दउ जेत्थु कुडुम्बउं अप्पण-छंद।। 17. जिबिभन्दिउ नायगु वसि करहु जसु अधिन्नई अन्नइं । मूलि विठ्ठइ तुंबिरिणहे अवसे सुक्कइं पण्णइं ॥ 84 ] अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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