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________________ सुंदरु मरणहरु गुणमणिरिणकेउ रिणयकुलमाणससररायहंसु उवसग्गु सहेवि हवेवि साहु जिण मुणि पवेवि हरिसियमणाइँ गोवउ वि णियाणे तहिँ मरेवि जुवईयरणवल्लहु मयरकेउ ॥8 णिम्मच्छरु वहयणलद्धसंसु ॥9 पावेसइ झाणे मोक्खलाहु ॥ 10 रिणयगेह गयइँ विपि वि जरणाइँ॥ 11 थिउ वणिपियउयरऍ अवयरेवि ॥ 12 घत्ता-तहिँ गम्भएँ अब्भऍ गाई रवि कमलिणिरल णावइ जलु । सिप्पिउडएँ रिणविडएँ ठिउ सहइ णं णितुल्लु मुत्ताहलु ॥ 13 3.5 तेण पुत्तेण जणु तु? खे महंतेहिं मेहेहिं जलु बुट्ठ ॥1 दुट्ठपाविठ्ठपोरत्थगणु त? णंदि पारणंदि देवेहिं आहे घुट्ठ ॥2 दुंदुहीघोसु कयतोसु हुउ दिब्यु फुल्ल पप्फुल्ल मेल्लेइ वणु सव्वु ॥3 मंदु पारणंदयारी हुप्रो वाउ वावि कुवेसु अब्भहिउ जलु जाउ ॥4 गोसमूहेहिँ विक्खित्तु थणदुद्ध एंतजंतेहिं पहिएहिं पहु रुद्ध ॥5 तो दिणे छठ्ठि उक्किट्ठकमसेरण दाविया छठ्ठिया ज्झत्ति वइसेण ।।6 अट्ठ दो दिवह बोलीण छुडु जाय ताम जा रणाम जिणयासि सणुराय ॥7 वालु सोमालु देविदसमदेहु लेवि भत्तीऍ जाएवि जिणगेहु ॥8 तोएँ पेच्छियउ पुच्छियउ मुणिचंदु मत्तमायंगु रगामेण इय छंदु ॥१ घत्ता-मंदरु जिह थिरु तिह बुहयरणहिँ कुंभरासि पभरिणज्जइ । महुतरणउ तरणउ एरिसु मुणिवि मुरिणवर णामु रइज्जइ ।। 10 3.6 तं सुरिणऊरण परगट्ठरईसो मेहरिणघोसु भणेइ जईसो ॥1 दिठ्ठ तए सिविणंतर सारो पुत्तिएँ तुंगु सुदंसरणमेरो ॥2 66 ] अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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