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सुतरंगहें गंगहॅ गोउ ता सुहमइ जिगमइ सयणयले सुरचित्तहरो सिहरी पवरो पवरंबुरिंगही पजलंतु सिही पसरम्मि सई वरसुद्धमई णिसि लक्खियउ तसु प्रविखयउ लइ जाहुँ वरं जिरणचेइहरं पयति श्रलं सिविरणस्स हलं भरि रमरणी इय छंदु मुणी
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पाठ
-11
सुदंसरणचरिउ
सन्धि-3
3.1
कि फलु इय सिविरणयदंसणेण इय पिसुरिवि णवजलहर सरेग उत्तुंगे भरभारियधरेग कुसुमरयसुरहिकय महुरेग सुररमणीकीलाम गहरे जललहरी चुंबिय अंबरेण श्रइरिणविडजडत्तविणासणेण
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धत्ता - गय जिरणहरु मुणिवरु परिणवेवि जिरगदासिएँ रिसि दिट्ठउ । गिरिवरु तरु सुरहरु जलहि सिहि इय सिविणंतरु सिट्ठउ ।। 18
किर जाव जम्मि रग गच्छइ ।। 9 सुत्तिय सिविरणय पेच्छइ ॥ 10 वकप्पयरू अमरिंदघरू # 11 सुविराइयो अवलोइयो || 12 गय सिग्घु तहिं थिउ कंतु जहिं ॥ 13 पभरणेइ पई पिय हंसगई ॥14 प्रविलंबणी भयवंतमुरणी ॥15 चलहारमरणी चलिया रमणी ॥ 16
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3.2
होसइ परमेसर कहि खरणे ॥1 सुरिण सुंदरि परिणउ मुणिवरेण ॥ 2 होसइ सुधीर सुउ गिरिवरेण ॥3 चाइउ लच्छीहरु तरुवरेण ॥14 सुरवंदणीउ वरसुरहरेग 115 गुणगणगहीरु रयपाय रेख 116 कलिमलु णिड्डहइ हुप्रासणेण ॥17
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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